SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૩૮૨ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका भावार्थ-हे प्रभो ! मेरी वीतराग देव, देवाधिदेव में भक्ति प्रतिदिन हो, भव-भव में हो, सदा काल हो । मैं सदाकाल आपकी भक्ति में भावना करता रहूँ। याचेऽहं याचेऽहं, जिन ! तव चरणारविंदयोर्भक्तिम् । याचेऽहं याचेऽहं, पुनरपि तामेव तामेव ।।१८।। अन्वयार्थ ( जिन ! ) हे जिनदेव ! ( अहम् ) मैं ( तव ) आपके ( चरण-अरविन्दयोः भक्तिम् ) चरण-कमलों की भक्ति की ( याचेऽहं ) याचना करता हूँ ( याचेऽहं याचेऽहम् ) याचना करता हूँ। याचना करता हूँ। ( पुनर् अपि ) बारंबार ( ताम् एव ताम् एव ) उस ही आपके चरणों की भक्ति की ( याचेऽहम् ) याचना करता हूँ ( याचेऽहम् ) याचना करता भावार्थ—हे प्रभो ! मैं बारम्बार आपके चरण-कमलों की भक्ति की याचना करता हूँ, उसीकी प्राप्ति की बार-बार इच्छा करता हूँ । बस आपके चरण-कमलों में लगन लगी रहे यही याचना करता हूँ। विघ्नौघाः प्रलयं यान्ति, शाकिनी- भूत पन्नगाः । विषो निर्विषतां याति स्तूयमाने जिनेश्वरे ।।१९।। अन्वयार्थ—( स्तूयमाने जिनश्वरे ) जिनेश्वर की स्तुति करने पर ( विघ्नौघाः ) विघ्नों का समूह तथा ( शाकिनी-भूत-पत्रगाः ) शाकिनी, भूत, सर्प ( प्रलयं यान्ति ) नष्ट हो जाते है, इसी तरह ( विषं निर्विषतां याति ) विष निर्विषता को प्राप्त हो जाता है। भावार्थ-जिनेश्वरदेव की स्तुति करने से विघ्नों का जाल समाप्त हो जाता है, शाकिनी, भूत, सर्प आदि की बाधाएँ क्षण भर में क्षय को प्राप्त हो जाती हैं तथा भयानक विष भी दूर हो जाता है। अञ्चलिका इच्छामि मंते ! समाहित्ति काउस्सग्गो कओ, तस्सालोचे रयणतयसरूवपरमप्यज्झाणलक्खणं समाहिभत्तीये णिच्चकालं अच्चमि, पुज्जेमि, बंदामि, णमस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्नि होउ, मज्झं ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy