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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका भावार्थ - जिनके अनुग्रह से मोक्ष के इच्छुक मुनिजनों का निर्दोष रत्नत्रय प्रकाशमान हों वह द्रव्य उत्पन्न हो । अर्थात् निर्दोष आहार, औषध आदि व संयम के उपकरण पिच्छी- कमंडलु आदि ऐसा वह शुभ द्रव्य है तथा मुनियों को यह निर्दोष रत्नत्रय की वृद्धि करने वाला द्रव्य जिस क्षेत्र में प्राप्त हो वह शुभ देश / क्षेत्र है। दिगम्बर मुनियों के सदा उत्तम रत्नत्रय की वृद्धि जिस काल में हो वह शुभ काल हैं तथा उन मुनियों के सदा आत्मानन्द की प्राप्ति से प्राप्त निर्मल परिणाम का होना शुभ भाव है। अर्थात् जिनके योग से मुनियों का रत्नत्रय उन्नतिशील बने वही शुभद्रव्य, शुभक्षेत्र, शुभकाल व शुभभाव हैं ऐसा जानना चाहिये । ३७० अनुष्टुप प्रध्वस्त घाति कर्माणः, केवलज्ञान भास्कराः । कुर्वन्तु जगतां शान्ति, वृषभाद्या जिनेश्वराः ।।१७।। अन्वयार्थ - ( प्रध्वस्त- घाति कर्माणः ) जिन्होंने घातिया कर्मों का क्षय कर दिया है जो ( केवलज्ञान - भास्कराः ) केवलज्ञानरूपी सूर्य से शोभायमान हैं ऐसे ( वृषभाद्या जिनेश्वराः ) वृषभ आदि तीर्थंकर ( जगतां शान्ति कुर्वन्तु । संसार के समस्त जीवों को शान्ति प्रदान करें । भावार्थ -- ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय व अन्तराय इन चार घातिया कर्मों का जिन्होंने समूल क्षय कर दिया है तथा जो केवलज्ञानरूपी सूर्य से सर्वजगत् को प्रकाशित करते हुए शोभा को प्राप्त हैं ऐसे वृषभनाथ को आदि लेकर तीर्थंकर महावीर पर्यन्त चतुर्विंशति तीर्थंकर जगत् के समस्त प्राणियों को शान्ति, सुख, क्षेम, कुशल प्रदान करें । क्षेपक श्लोकानि शांति शिरोधृत जिनेश्वर शासनानां, शान्तिः निरन्तर तपोभव भावितानां । शान्तिः कषाय जय जृम्भित वैभवानां, शान्तिः स्वभाव महिमानमुपागतानाम् ।। १ ।। अन्वयार्थ --- ( जिनेश्वर शासनानाम् ) जिनेन्द्रदेव की आज्ञा को ( शिरोभृत) मस्तक पर धारण करने वालों को शान्तिः ) शन्ति प्राप्त (
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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