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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ३४१ ( जिनशासन-सत् प्रदीप - -भासुर - मूर्तीन् ) जिनशासनरूपी समीचीन दीपक के प्रकाश से जिनका शरीर देदीप्यमान है अथवा जिनका देदीप्यमान शरीर जिनशासन को प्रकाशित करने के लिये समीचीन दीपकवत् है ( सिद्धि प्रपित्सुमनसः ) जिनका उत्तम शुभ मन सिद्धि की प्राप्ति को चाहता है तथा जो ( बद्ध- रज:- विपुल - मूल घातन - कुशलान् ) बँधे हुए कर्मों के विशाल कुल कारणों को घातने में कुशल हैं ऐसे उन आचार्य भगवन्तों को ( अभिनौमि ) मैं मन-वचन-काय से नमस्कार करता हूँ । भावार्थ - जो मुनियों में विशिष्ट माहात्म्य को प्राप्त हैं अर्थात् जो मुनिसमूह में श्रेष्ठ हैं, जिनका रत्नत्रय से दीप्तिमान शरीर जिनशासन का लोक में उद्योतन के करने के लिये समीचीन दीपक के समान है। जिनका उत्तम मन सदा मुक्ति की प्राप्ति में ही लगा रहता है तथा जो अनादिकाल से आत्मा से बद्ध कर्मरज को मूल से क्षय करने में कुशल हैं ऐसे आचार्य परमेष्ठी को मेरा नमस्कार है । गुणमणिविरचितवपुषः, षड्द्रव्यविनिश्चितस्यधातृन्सततम् । रहितप्रमादचर्यान्, दर्शनशुद्धान् गणस्य संतुष्टि करान् ।। ३ ।। अन्वयार्थ - ( गुणमणि- विरचित - वपुषः ) जिनका शरीर गुणरूपी मणियों से विरचित है, जो ( सततम् ) सदाकाल ( षट्-द्रव्य-विनिश्चितस्य धातृन् ) छह द्रव्यों के निश्चय को धारण करने वाले हैं ( रहित प्रमाद चर्यान् ) प्रमाद चर्या से रहित हैं ( दर्शनशुद्धान् ) सम्यग्दर्शन से शुद्ध हैं तथा ( गणस्य संतुष्टिकरान् ) गण को अर्थात् साधु संघ को सन्तुष्ट करने वाले हैं (अभिनौमि ) उन आचार्य परमेष्ठी भगवन्त को मेरा नमस्कार है । भावार्थ – जिन आचार्य परमेष्ठी भगवन्त का शरीर रत्नत्रय गुणरूपी मणियों से रचा गया है, जो सदाकाल छह द्रव्यों के चिन्तन में लगे हुए, मन में गाढ़ श्रद्धा को धारण करते हैं, निष्प्रमाद - प्रमादरहित चर्या से सुशोभित हैं, अर्थात् जिनकी चर्या में इन्द्रिय विषय, विकथा आदि प्रमादों की गंध भी नहीं हैं, जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध हैं तथा जो सदा चतुर्विध संघ को सन्तुष्ट करने वाले हैं उनको मेरा नमस्कार है । मोहच्छिदुग्रतपसः, प्रशस्तपरिशुद्धहृदयशोभन व्यवहारान् । प्रासुकनिलयाननघानाश्शा विध्वंसिखेतसो हतकुपथान् । । ४ । ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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