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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका तीन गुप्तियों से सहित हो ( ध्यान-अध्ययन वशं-गताः ) ध्यान और स्वाध्याय के वशीभूत हो ( मनसि ) मन में ( शिव सुखम्-आधाय) मोक्षसुन को धारण कर ( कर्मणां विशुद्धये ) कर्मों के क्षय के लिये ( तपश्चरन्ति ) तपश्चरण करते हैं ।
भावार्थ-निर्मोही मुनिराज १३ प्रकार के चारित्र सहित हो, ध्यानअध्ययन में लीन होते हुए संसार-भ्रमण से, मुक्ति के सुखों की इच्छा करते हुए कर्मो को क्षय करने के लिये तपश्चरण करते हैं। ग्रीष्म ऋतु में मुनिराज क्या करते हैं ?
दुबई छन्द दिनकर किरणनिकरसंतप्त, शिलानिचयेषु निमहाः, मलपटलावलिप्त तनवः, शिथिली कृतकर्म बंधनाः । व्यपगतमदनदर्प रतिदोष, कवाय विरक्त मत्सरा:, गिरिशिखरेषुचंडकिरणाभि, मुखस्थितयो दिगम्बराः ।।३।।
अन्वयार्थ—( मल-पटल-अवलिप्त-तनवः ) जिनका शरीर मैल के समूह से लिप्त हो रहा है, ( शिथिलीकृत-कर्मबन्धनाः ) जिन्होंने कर्मों के बन्धनों को शिथिल कर दिया है ( व्यपगत-मदन-दर्प-रति-दोष-कषायविरक्तमत्सरः ) जिनके काम, अहंकार, रति/राग मोह आदि दोष तथा कषाय नष्ट चुके हैं तथा जो मात्सर्य भाव से रहित हैं ऐसे ( दिगम्बराः ) दिशारूपी अम्बर को धारण करने वाले निम्रन्थ मुनिराज ( निस्पृहा: ) शरीर से ममत्व रहित व भोगोपभोग की इच्छा से रहित होकर ( दिनकरकिरण-निकर-संतप्त शिलानिचयेषु ) सूर्य की किरणों के समूह से संतप्त शिलाओं के समूह से युक्त ( गिरि-शिखरेषु ) पर्वतों के शिखरों पर ( चण्डकिरण-अभिमुख-स्थितयः ) सूर्य के सन्मुख स्थित हो ( तपश्चरन्ति ) तपश्चरण करते हैं।
भावार्थ--अस्नान व्रत के धारक जिन दिगम्बर सन्तों का शरीर घने मैल से लिप्त हो रहा है, तपश्चर्या के फलस्वरूप जिनके कर्मों के जड़ बन्धन भी शिथिल हो चुके हैं, जो कामवेदना, मान, राग, मोह आदि दोष व कषायें नष्ट हो चुकी हैं तथा जो मात्सर्य/ईष्या-डाह से रहित हैं, ऐसे