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________________ " विज्ञान टीका ३२१ ७. अनिह्नवाचार – जिन गुरु से शिक्षण प्राप्त किया है उसका नाम नहीं छिपाना । और ८. बहुमानाचार – मुझे इस ग्रन्थ का स्वाध्याय करने का अपूर्व अवसर प्राप्त हुआ, इस विचार से अपना अहोभाग्य समझना, इस तरह आगम के प्रति बहुमान प्रकट करना बहुमानाचार है I इस प्रकार ८ अंगों सहित जो जीव स्वयं स्वाध्याय करते हैं, दूसरे को सुनाते हैं उनके ज्ञानाचार की सिद्धि होती है। ज्ञानाचार की आराधना से उनके ज्ञानावरण का क्षयोपशम बढ़ता है तथा निकट भविष्य में ज्ञान के आवरण का पूर्ण अभाव होकर केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। ऐसे ज्ञानाचार को भी पूज्यपाद स्वामी मन-वचन-काय से नमस्कार करते हैं । दर्शनाचार का स्वरूप शंका- दृष्टि - विमोह - काङ्क्षणविधि - व्यावृत्ति सन्नद्धताम्, वात्सत्यं विचिकित्सना दुपरतिं धर्मोपबृंह-क्रियाम् । शक्त्या शासन- दीपनं हित-पथाद् भ्रष्टस्य संस्थापनम्, वन्दे दर्शन - गोचरं सुचरितं मूर्ध्ना नमन्नादरात् ।। ३ । १ - - अन्वयार्थ - ( शंका व्यावृत्ति - सन्नद्धतां ) शंका का त्याग करने से तत्परता ( दृष्टि-विमोह व्यावृत्तिसन्नद्धतां ) अमूढदृष्टि अथवा दृष्टि विमोह/ मूढदृष्टि के त्याग में तत्परता ( काङ्क्षणविधि व्यावृत्ति सन्नद्धतां ) नि: काक्षित अर्थात् भोगाकांक्षा के त्याग में तत्परता ( वात्सल्यं ) रत्नत्रयधारकों में प्रेम रखना ( विचिकित्सात् उपरतिं ) ग्लानि से दूर रहना ( धर्म उपबृंहक्रियाम् ) धर्म की वृद्धि करना ( शक्त्या ) शक्ति अनुसार ( शासन - दीपनं ) जिन शासन की प्रभावना करना ( हितपथात् भ्रष्टस्य संस्थापनं ) हितकारी संयम आदि के मार्ग से च्युत व्यक्ति को पुनः सम्यक् प्रकार से मार्ग में स्थिर करना। इस प्रकार ( दर्शन - गोचर ) सम्यक्दर्शन विषयक ( सुचरितं ) उत्तम आचार को ( आदरात् ) आदर से ( नमन् ) नमस्कार करता हुआ मैं ( मूर्ध्ना ) सिर से ( वन्दे ) नमस्कार करता हूँ । भावार्थ - दर्शनाचार का पालन अष्ट अंगों सहित होता है- १. निःशंकित अंग २. नि:कांक्षित ३. निर्विचिकित्सा ४ अमूढदृष्टि ५. उपगूहन
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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