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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका श्री चारित्र भक्ति शार्दूलविक्रीडितम् येनेन्द्रान् भुवन-त्रयस्य विलसत्-केयूर- हारांगदान्, भास्वन्- मौलि-मणिप्रभा-प्रविसरोत्-तुंगोत्तमांगात्रतान् । स्वेषां पाद-पयोरुहेषु मुनय-श्चक्रुः प्रकामं सदा, वन्दे पञ्चतयं तमद्य निगदन्-नाचार-मभ्यर्चितम् ।।१।। अन्वयार्थ-जिनके शरीर ( विलसत्-केयूर-हार-अङ्गदान् ) केयूर, हार व बाजूबन्द से शोभायमान हैं, जिनके ( उत्तुंग उत्तमाङ्ग ) ऊँचे उठे हुए मस्तक ( भास्वन्-मौलि-मणिप्रभा विसरः ) देदीप्यमान मुकुटों की मणियों की कान्ति के विस्तार से, शोभायमान हैं/सहित हैं ऐसे ( भुवनत्रयस्य ) तीनों लोकों के ( इन्द्रान् ) समस्त इन्द्रों को/स्वामियों को ( येन मुनयः ) जिन मुनियों के ( पदः । गलेशका अच्छी तरह ( स्वेषां पादपयोरुहेषु ) अपने चरण-कमलों में ( नतान् चक्रुः ) नम्रीभूत किया है, ऐसे ( अर्चितम् ) अत्यन्त पूज्य ( पञ्चतयं निगदन ) पंचाचारों का कथन करता हुआ मैं ( अद्य ) आज ( तम् ) उस पंचभेद वाले आचार को ( वन्दे ) नमस्कार करता हूँ। मावार्थ-यहाँ श्री पूज्यपाद स्वामी चारित्र भुक्ति के माध्यम से पञ्चाचारों के वर्णन की प्रतिज्ञा करते हुए लिखते हैं कि जिन पूज्य दिगम्बर मुनिराजों के पंचाचारों के आचरण से प्रभावित होकर तीनों लोकों के इन्द्रों ने स्वयं आकर उन मुनिराजों के चरणों में मस्तक झुकाया उन दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, वीर्याचार को मैं नमस्कार करता हूँ। ज्ञानाचार का स्वरूप अर्थ-व्यञ्जन-तद्हया-विकलता-कालोपधा-प्रश्नयाः, स्वाचार्याधनपलवो बहु-मति-श्चेत्यष्टया ध्याहृतम् । श्रीमज्ज्ञाति-कुलेन्दुना भगवता तीर्थस्य कर्नाऽासा, ज्ञानाचार- महं त्रिधा प्रणिपताभ्युद्भूतये कर्मणाम् ।। २।। अन्वयार्थ-( श्रीमत् ) अन्तरङ्ग, बहिरंङ्ग लक्ष्मी के स्वामी ( ज्ञाति कुल इन्दुना ) ज्ञातृवंश के चन्द्रमास्वरूप ( तीर्थस्यका ) धर्मतीर्थ के
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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