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________________ ३१४ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ( कल्पाकल्पं महाकल्यं पुण्डरीकं च ) कल्पाकल्प, महाकल्प और पुण्डरीक की ( स्तौमि ) मैं स्तुति करता हूँ तथा ( महापुण्डरीक नामैव अशीतिकं च ) महापुण्डरीक और निषिद्धिका के प्रति ( प्रणिपतित; अस्मि) मैं नम्रीभूत हूँ ( निपुणानि ) वस्तु तत्त्व का सूक्ष्म विवेचन करने में निपुण ये ( अङ्ग बाह्यानि ) अङ्गबाह्य ( प्रकीर्णक ) प्रकीर्णक हैं । अर्थात् अङ्गबाह्य श्रुत को प्रकीर्णक भी कहते हैं, इनमें वस्तु तत्त्व का सूक्ष्मरीत्या विवेचन पाया जाता है। भावार्थ-सामायिक की विधि का कथन करने वाला सामायिक प्रकीर्णक है। २४ तीर्थंकरों की स्तुति जिसमें हो वह चतुर्विशति स्तव प्रकीर्णक है । एक तीर्थंकर की मुख्यता स्तुति करने वाला वन्दना प्रकीर्णक है | प्रमादजन्य दोषों को दूर करने के उपायों का कथन करने वाला प्रतिक्रमण प्रकीर्णक है। विनय के स्वरूप की विवेचना जिसमें हो वह वैनयिक प्रकीर्णक है । नित्य-नैमित्तिक क्रियाओं को बताने वाला कृतिकर्म प्रकीर्णक है । मुनि की आचार संहिता किस काल में कैसी हो दिखाने वाला दशवकालिक प्रकीर्णक है । उपसर्ग व परीषहों को सहन की विधि का जिसमें वर्णन है वह उत्तराध्ययन प्रकीर्णक है। योग्य आचरण का विधान करने वाला कल्पव्यवहार प्रकीर्णक है। योग्य अयोग्य आहार की प्ररूपणा करने वाला कल्पाकल्प प्रकीर्णक है। महापुरुषों के आचरण का प्ररूपक महाकल्प प्रकीर्णक है। चार प्रकार के देवों में उत्पत्ति के साधनों को प्रज्ञापक पुण्डरीक प्रकीर्णक है। इन्द्रों में उत्पत्ति के साधनों को दर्शाने वाला महापुण्डरीक प्रकीर्णक है तथा प्रमादजन्य सूक्ष्म या स्थूल दोषों के शक्ति अनुसार प्रायश्चित का उपदेष्टा शास्त्र अशीतिका या निषिहिका प्रकीर्णक कहलाता है। ये सभी १४ प्रकीर्णक अङ्गबाह्य शास्त्र हैं । द्वादशांग में ही गर्भित हैं । मैं नम्रीभून हुआ इनकी स्तुति, पूजा, वन्दना करता हूँ। ये सभी शास्त्र वस्तुस्वरूप की सूक्ष्म प्ररूपणा में कुशल महाशास्त्र हैं। अवधिज्ञान की स्तुति पुद्रल-मर्यादोक्त प्रत्यक्षं सप्रभेद-मवधि च । देशावधि-परमावधि-सर्वावधि-भेद-मभिवन्दे ।।२७।। अन्वयार्थ ( पुद्गल-मर्यादा-उक्तं ) जिसमें विषयभूत पुद्गल की
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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