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________________ २४ द्वारों को ( यजे अभिनौमि ) मैं भक्तिपूर्वक मन-वचन-काय से नमस्कार करता हूँ। भावार्थ-दूसरे आग्रयणीय पूर्व की पञ्चम वस्तु च्यवनलब्धि है, उसमें २४ अनुयोगद्वार हैं-- १. कृति, २. वेदना, ३. स्पर्शन, ४. कर्म, ५. प्रकृति, ६. बन्ध, ७. निबन्धन, ८. प्रक्रम, २. अनुपक्रम, १०, अभ्युदय, ११. मोक्ष, १२. संक्रम, १३. लेश्या, १४. लेश्याकर्म, १५. लेश्या परिणाम, १६. सातासात, १७. दीर्घह्रस्व, १८. भवधारणीय, १९ पुद्गलात्म, २०. निधत्तानिधत्त,, २१. निकाचितानिकाचित, २२. कर्मस्थिति २३. पश्चिमस्कन्ध और २४. अल्पबहुत्व। ये २४ अनुयोग चतुर्थ कर्मप्रभृति प्राभृतक में प्रवेश करने के लिये द्वार के समान हैं। इन सबको मेरा भक्तिपूर्वक नमस्कार है। द्वादशांग श्रुतज्ञान की पद संख्या कोटीनां द्वादशशत-मष्टापञ्चाशतं सहस्त्राणाम् । लक्षत्र्यशीति-मेव च पञ्च च वन्दे श्रुतपदानि ।।२२।। अन्वयार्थ ( श्रुतपदानि ) द्वादशाङ्ग के समस्त पदों ( कोटीनां द्वादशशतम् अष्टपञ्चाशतम् सहस्राणाम् लक्षत्रि अशीति एव च पञ्च च ) एक सौ बारह करोड़ तेरासी लाख अट्ठावन हजार पाँच पदों को ( वन्दे) मैं नमस्कार करता हूँ। भावार्थ-द्वादशांग के ११२८३५८००५ पदों की मैं वन्दना करता एक एक पद के अक्षरों की संख्या षोडशशतं चतुस्त्रिंशत् कोटीनां त्र्यशीति-लक्षाणि । शतसंख्याष्टा सप्तति-मष्टाशीतिं च पद-वर्णान् ।। २३ ।। अन्वयार्थ--( षोडशशतं चतुस्त्रिंशत् कोटीनां ) सोलह सौ चौतीस करोड़ ( त्रि अशीतिलक्षाणि ) तेरासी लाख ( सप्ततिम् ) सात हजार ( च) और ( शतसंख्याष्टा अष्टाशीतिं ) आठ सौ अठासी ( पदवर्णनम् ) पद के अक्षर हैं। जिनागम में पद के तीन भेद किये गये हैं । १. अर्थपद २. मध्यमपद
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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