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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका द्वादशांग के समस्त अपुनरुक्त अक्षरों का प्रमाण १४.४४६ ७४४ ०७३\9 • ९८१०१५ कुल बीस अंग प्रमाण है | मध्यम पद के अक्षरों का प्रमाण सौलह सौ चौंतीस करोड़ तिरासी लाख सात हजार आठ सौ अठासी है। मध्यमपद के अक्षरों का जो प्रमाण हैं उसका समस्त द्वादशांग के अक्षरों के प्रमाण में भाग देने पर जितना लब्ध आवे उतने अंग प्रविष्ट अक्षर होते हैं और शेष जितने अक्षर रहें उतना अंगबाह्य अक्षरों या श्रुत का प्रमाण होता है। वास्तव में यहाँ अङ्ग बाह्य या अंगप्रविष्ट का भेद मध्यमपदों की अपेक्षा है अतः अंग बाह्य या अंग प्रविष्ट दोनों द्वादशांग के ही भेद हैं । अर्थात् ये सब द्वादशांग में ही गर्भित हैं I ३०४ ऐसा यह श्रुतज्ञान परोक्षरूप से अनन्त पदार्थों को जानता है अतः उस श्रुतज्ञान को मैं नमस्कार करता हूँ । भावश्रुतज्ञान पर्यायाक्षर पद संघात प्रतिपत्तिकानुयोग विधीन् । प्राभूतक- प्राभृतकं प्राभृतकं वस्तु पूर्वं च ।। ५ ।। तेषां समासतोऽपि च विंशति- भेदान् समश्नुवानं तत् । वन्दे द्वादशधोक्तं गम्भीर वर शास्त्र पद्धत्या ।। ६ ।। - - अन्वयार्थ -- ( पर्याय- अक्षर-पद- संघात प्रतिपत्तिक- अनुयोग विधीन् ) पर्याय, अक्षर, पद संघात, प्रतिपत्तिक, अनुयोग विधि को (च) और ( प्राभृतक प्राभृतकं प्राभृतकं वस्तु पूर्वं ) प्राभृतक प्राभृतक, प्राभृतक, वस्तु तथा पूर्व को व ( तेषां समासतः अपि च ) उनके भी समास से होने वाले पर्याय समास, अक्षर समास, पद समास, संघात समास, प्रतिपत्तिक समास, अनुयोग समास, प्राभृतक प्राभृतक समास, प्राभृतक समास, वस्तु समास और पूर्व समास इन (विंशतिभेदान् ) बीस भेदों को ( समश्नुवानं ) व्याप्त करने वाले तथा ( गंभीर - वर - शास्त्र - पद्धत्या ) गंभीर उत्कृष्ट शास्त्र पद्धति से ( द्वादशधा उक्तं ) बारह प्रकार के कहे गये ( तत् ) उस ( श्रुतं वन्दे ) श्रुतज्ञान को ( वन्दे ) मैं वन्दन करता हूँ नमन करता हूँ । भावार्थ - श्रुतज्ञान के पर्याय आदि २० भेद हैं। इनमें पर्यायज्ञान सबसे जघन्य ज्ञान हैं। इस ज्ञान का दूसरा नाम लब्ध्यक्षर ज्ञान भी हैं।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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