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________________ २६६ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका तादृक् - सप्मत् - समेता, विविध-नय-तपः- संयम-ज्ञान-दष्टि - चर्या-सिद्धाः समन्तात, प्रवितत्-यशसो विश्व-देवाधि-देवाः । भूता भव्या भवन्तः, सकल-जगति ये स्तूयमाना विशिष्टस्तान् सर्वान् नौम्यनन्तान, निजिग-मिषु-ररं तत्स्वरूपंत्रिसन्ध्यम् ।।९।। ___ अन्वयार्थ ( ये ) जो सिद्ध भगवान् ( तादृक सम्पत समेता ) अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनन्त सुख, अनन्त वीर्य आदि अनन्त गुणों रूपी निधी के स्वामी है । ( विविधनय तप: संयम-ज्ञानदृष्टि-चर्या सिद्धा: ) अनेक प्रकार के नय, तप, संयम, ज्ञान, दर्शन/सम्यक्त्व व चारित्र से सिद्ध हुए है ( समन्तात् प्रवितत यशसः ) जिनका यश चारों दिशओं में फैला हुआ है ( विश्व देवाधिदेवा: ) विश्व में जितने देव हैं उन सबके जो अधिदेव देवाधिदेव/सब दोवों के स्वामी हैं, ( सकल जगति ) सारे विश्व में/समस्त संसार में ( विशिष्टः स्तुयमान: ) तीर्थंकर जैसे विशिष्ट महापुरुषों के द्वारा जो स्तुति को प्राप्त हैं, ऐसे जो ( भूता भव्या भवन्त: ) भूतकाल. में हो चुके, भविष्यकाल में हो चुके और वर्तमान में हो रहे है ( तान् सर्वान् अनन्तान् ) उन सभी अनन्त सिद्ध परमेष्ठियों को ( अरं ) शीघ्र ही ( तत्स्वरूपं ) उस सिद्ध स्वरूप को ( निजिगिमिषुः ) प्राप्त करने की इच्छा करने वाला मैं ( त्रिसंध्यम् ) प्राप्तः मध्याह्न-सायं तीनों कालों मे ( नौमि ) नमस्कार करता हूँ। भावार्थ-जो सिद्ध भगवान अष्ट कर्मों के क्षय से सम्यक्त्व, ज्ञान आदि अनन्त गुणरूपी सम्पत्ति के स्वामी हो लोकान में शोभायमान हैं, नैगम-संग्रह आदि विविध नय व्यवहार-निश्चयनय, अन्तरंग-बहिरंग तप, सामायिक, छेदोपस्थापना आदि सात संयम, केवलज्ञान, केवलदर्शन और यथाख्यातचारित्र से सिद्ध अवस्था को प्राप्त हुए हैं। जिनका यश समस्त दिक्-दिगन्तराल में व्याप्त है, जो सब देवों में प्रधान हैं देवाधिदेव हैं, दीक्षा ग्रहण करते समय तीर्थंकर भी जिनकी जिनकी वन्दना करते हैं, ऐसे भूतकाल में जो हो गये, भावीकाल में जो होंगे और वर्तमान मे जो हो रहे हैं उन समस्त सिद्धों को मैं सिद्ध पद का इच्छुक, शीघ्र सिद्ध पद की प्राप्ति के लिये नमस्कार करता हूँ। जो जिस गुण का इच्छुक हैं वह उन गुणों से युक्त महापुरुषो की आराधना करता है। आचार्यदेव कहते हैं-मैं पूज्यपाद
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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