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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्वयार्थ—( यदि ) यदि ( अद्य ) आज ( ईर्यापथे ) मार्ग में ( प्रचलता ) चलो पयाद्वारा प्रमामा ) प्रगद से केन्द्रिय प्रमुख ) एकेन्द्रिय आदि (जीव निकायबाधा ) जीवों के समूह को पीड़ा ( निर्वतिता भवेत् ) की गई हो ( अयुगान्तरेक्षा ) चार हाथ भूमि के अन्तराल को न देखा हो-चार हाथ भूमि देखकर गमन नही किया हो तो ( मे तदुरितं ) मेरा वह पाप ( गुरुभक्तिः ) गुरु भक्ति से ( मिथ्या ) मिथ्या ( अस्तु) हो। भावार्थ- हे भगवन् ! मार्ग मे चलते हुए मेरे द्वारा एकेन्द्रिय आदि जीवों के समूह को पीड़ा दी गई हो, ईर्यासमिति का पालन नहीं किया गया हो तो मेरा वह पाप गुरुभक्ति के प्रसाद से मिथ्या हो। पडिक्कमामि भंते ! इरिया-बहियाए, विराहणाए, अणागुत्ते, अइग्गमणे, णिग्गमणे, ठाणे, गमणे, चंकमणे, पाणुग्गयणे, बीजुग्गमणे, हरिदुग्गमणे, उच्चारपस्सवणखेल-सिंहाण-वियडियपहावणियाए, जे जीवा एइंदिया वा, बेइंदिया वा, तेइंदिया वा, चारिदिया था, पंचिंदिया वा, णोल्लिदा पा, पेल्लिदा वा, संघट्टिदा वा, संधादिदा था, उदाविदा वा, परिदाविदा वा, किरिच्छिदावा, लेस्सिदा वा, छिदिदा था, मिंदिदा वा, ठाणदो वा, ठाण-चंकमणदो वा, तस्स उत्तरगुणं, तस्स पायच्छित्तकरणं, तस्स विसोहि-करणं, भाव अरहताणं, भयवंताणं, णमोक्कारं, पजुवासं करेमि, ताव कालं, पावकम्मं दुथरियं योस्सरामि । अन्वयार्थ ( भंते ! ) हे भगवन ! ( इरियावहियाए ) ईर्यापथ में (अणागुत्ते ) मन-वचन-काय की गुप्ति रहित होकर ( विराहणाए ) जो कुछ जीवों की विराधना की है ( पडिक्कमामि ) उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ! ( अइगमणे ) शीघ्र गमन करने में (णिग्गमणे) चलने की प्रथम क्रिया प्रारंभ करने में ( ठाणे ) जहाँ कहीं ठहरने में ( गमणे ) गमन में ( चंकमणे ) हाथ-पैर फैलाने या संकोच करने में ( पाणुग्गमणे ) प्राणियों पर गमन करने में ( बीजुग्गमणे ) बीज पर गमन करने में ( हरिदुग्गमणे ) हरितकाय पर गमन करने में ( उच्चार पस्सवण-खेल-सिंहाण-वियडियपइट्ठावणियाए ) मल-मूत्र क्षेपण करने में, थूकनें में, कफ डालने में, इत्यादि विकृतियों के क्षेपण में । ( जे ) जो ( एइंदिया वा, बेइंदिया वा, तेइंदिया
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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