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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका निस्योत्सवं मणिमयं निलयं जिनानाम्, त्रैलोक्य भूषणमहं शरणं प्रपद्ये ।। २।। अन्वयापर्थ--( श्रीमत् ) शोभायुक्त, परम ऐश्वर्य सहित ( पवित्रम् ) पवित्र ( अकलङ्कलं) समस्त जीवों के लिये मंगल रूप ( आदितीर्थ ) अद्वितीय तीर्थ स्वरूप ( नित्योत्सवं ) निरन्तर होने वाले उत्सवों युक्त ( मणिमयं ) मणियों से निर्मित ( त्रैलोक्यभूषण ) तीन लोकों के आभूषण रूप ( जिनानाम् ) जिनेन्द्रदेव के ( स्वयंभुवं निलयं ) अकृत्रिम आलय"जिनालयों' की ( शरणं प्रपद्ये ) शरण को प्राप्त होता हूँ। भावार्थ-जो चैत्यालय समवसरण की शोभा रूप ऐश्वर्य से सहित हैं, जिनेन्द्रदेव के संबंध से पवित्र हैं, कलंक से रहित हैं, जिनकी विविध प्रकार के मंगल होते रहते हैं, जो अद्वितीय तीर्थ रूप हैं, अष्टाह्निका, दसलक्षण, पूजा-विधान महाभिषेक, महायज्ञ यदि उत्सव जहाँ निरन्तर होते रहते हैं जो विविध मणियों से मंडित है तीनों लोकों का आभूषण रूप है ऐसे अकृत्रिम चैत्यालयों की शरण को मैं प्राप्त होता हूँ। अनुष्टुप श्रीमत्परम-गम्भीर, स्यावादामोघ-लाञ्छनम् । जीयात्-त्रैलोक्यनाथस्य, शासनं जिनशासनम् ।। ३ ।। अन्वयार्थ ( श्रीमत् ) अन्तरंग-बहिरंग लक्ष्मी से पूर्ण ( परम-गंभीर ) अत्यन्त गंभीर ( स्याद्वाद-अमोघ-लाञ्छनम् ) स्याद्वाद जिसका सार्थक सफल चिह्न है एव ( त्रैलोक्यनाथस्य शासनम् ) तीन लोक के स्वामीचक्रवर्ती आदि पर जो शासन करने वाला है ऐसा ( जिनशासनं ) जिनशासन ( जीयात् ) जयवन्त रहे । भावार्थ-जो अनेक प्रकार की अन्तरंग लक्ष्मियों से भरपूर है, अत्यंत गंभीर "स्याद्वाद" ही जिसका सफल निर्विवाद चिह्न है, तथा तीन लोकों के अधिपति-अधोलोक के स्वामी धरणेन्द्र, मध्यलोक के स्वामी चक्रवती व ऊर्ध्वलोक के स्वामी इन्द्र आदि पर जो शासन करने वाला है ऐसा वीतराग अर्हन्तदेव का “जिनशासन' सदा जयवन्त रहे।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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