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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
२२३ पडिक्कमामि भंते ! वद पडिमाए विदियसिक्खावदेः-फांसिदिय परिभोगपरिमाणाइक्कमणेण वा, रसणिदिय परिभोगपरिमाणाइक्कमणेण वा, घाणिंदिय- परिभोगपरिमाणाइक्कमणेण वा, चक्खिदियपरिभोगपरिमाणक्यको का, सपदिय नियोगपरिमाणा-इक्क्रमणेण वा जो मए देवसिओ ( राइयो) अचारो मणसा, वचसा, काएण, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा, समणुमण्णिदो तस्स मिच्छा में दुक्कडं ।। २-१०-२।।
हे भगवन् ! द्वितीय व्रतप्रतिमा में द्वितीय शिक्षाव्रत परिभोगपरिमाण व्रत में लगे अतिचार आदि दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ। स्पर्शेन्द्रिय संबंध परिभोग परिमाण के अतिक्रमण से, रसनेन्द्रिय संबंधी परिभोगपरिमाण के अतिक्रमण से, घ्राणेन्द्रिय संबंधी परिभोगपरिमाण के अतिक्रमण से, चक्षु इन्द्रिय संबंधी परिभोगपरिमाण के अतिक्रमण से या श्रोत्र ( कर्ण) इन्द्रिय संबंधी परिभोग परिमाण के अतिक्रमण से मेरे द्वारा जो भी दिन या रात्रि में अतिचार मन से, वचन से, काय से, स्वयं किया हो, दूसरों से कराया हो तो परिभोगपरिमाणव्रत संबंधी मेरे दुष्कृत/पाप मिथ्या हों।
पडिक्कमामि भंते ! वद पडिमाएतिदिए सिक्खायदे:सचित्तणिक्खेवेण वा, सचित्तपिहाणेण वा, परउवएसेण वा, कालाइक्कमणेण वा, मच्छरिएण वा, जो मए देवसिओ ( राइयो) अइयारो मणसा, वचसा, कारण, कदो वा, कारिदोवा, कीरंतो वा, समणुमपिणदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।२-११-३।।
हे भगवन् ! व्रत प्रतिमा में तीसरा शिक्षाव्रत है अतिथिसंविभाग उसमें सचित्त [ योनिभूत ] वस्तु में प्रासुक पदार्थ को रखा हो, सचित्त से ढका हो, पर के उपदेश से या अन्य का द्रव्य अपना कहकर दिया हो, दान देने के समय का उल्लंघन किया हो, दान देते समय अन्य दाताओं से मात्सर्य किया हो इत्यादि अनेक प्रकार से मेरे द्वारा दिन या रात्रि में जो भी अतिचार मन से, वचन से, काय से, कृत, कारित, अनुमोदना से हुए हों तो व्रत संबंधी मेरे पाप मिथ्या हों।
पडिक्कमामि भंते ! वद पडिमाए चउत्थे सिक्खापदेः –