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________________ १८६ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका मुनिव्रत धारण करके सिद्धि को प्राप्त होते हैं, केवलज्ञान को प्राप्तकर बुद्ध होते हैं, कर्मों से मुक्त होते हैं, पूर्ण निर्वाण को प्राप्त करते हैं, सब दुखों का अन्त करते हैं। जब तक अरहंत भगवान् को नमस्कार करता हूँ, उनकी पर्युपासना अर्थात् पूजा-अर्चा-वन्दना करता हूँ, तब तक पाप कर्म रूप दुश्चरित्र को छोड़ता हूँ, त्याग करता हूँ। वीरभक्ति ___ अथ सर्वातिचार विशुद्धयर्थं पाक्षिक ( चातुर्मासिक) (वार्षिक) प्रतिक्रमण-क्रियायां, कृप्त-दोष-निराकरणार्थ पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्म-क्षयार्थ, भाव-पूजा-वन्दना- स्तव-समेतं श्री निष्ठितकरण-चन्द्रवीरभक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् । अर्थ-अब सब अतिचारों की विशुद्धि के लिये पाक्षिक [ चातुर्मासिक, सांवत्सरिक ] प्रतिक्रमण क्रिया में पूर्व आचार्यों के अनुक्रम से समस्त कर्मों के क्षय करने के लिये भावपूजा, वन्दना, स्तुति सहित-निष्ठितकरण वीर भक्ति संबंधी कायोत्सर्ग को मैं करता हूँ। विशेष— इस प्रकार उच्चारण के पश्चात् णमो अरहताणं इत्यादि दण्डक पढ़कर पाक्षिक प्रतिक्रमण में ३०० उच्छ्वास तथा चातुर्मासिक व सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में ४०० श्वासोच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करें। पश्चात् थोस्सामिस्तव पढ़कर चन्द्रप्रभ और वीरस्तुति भक्ति अञ्चलिका सहित पढ़ें। श्री चन्द्रप्रभजिनस्तुति चन्द्रप्रमं चन्द्रमरीचिगौर, चन्द्रं द्वितीयं जगतीव कान्तम् । वन्देऽभिवंचं, महतामृषीन्द्रं, जिनंजितस्वानसकवाय बंधम् ।।१॥ अन्वयार्थ ( चन्द्रमरीचिगौरं ) चन्द्रमा की किरणों के समान गौर वर्ण ( जगति ) संसार में ( द्वितीयं चन्द्रं इव कान्तम् ) दूसरे चन्द्रमा के समान कान्तिमान/सुन्दर ( ऋषीन्द्र ) गणधर आदि ऋषियों के इन्द्र अर्थात् बड़े-बड़े ऋषियों के स्वामी ( महतो अभिवन्ध ) इन्द्र, चक्रवर्ती आदि
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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