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________________ १८४ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका मज्जाणुराय-रत्तो, मुच्छिदढे, गिहि-दडे, विहि-दढे, पालि-दहे, सेविदतु, इणमेव णिग्गंथ- पवयणे, अणुतरे, से-अटे, सेवणुढे ।। अर्थ-उन श्रावक के १२ व्रतों में प्राप्त/ स्वीकृत उपलब्ध जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष प्राप्ति में कुशल हैं, धर्मानुरागरक्त हुआ भी मन से अनुरागी, नस-नस, हाड़-मांस से भी धर्मानुरागरक्त होने पर मूछित अर्थ में, गृहीत अर्थ में, विहित/कथित अर्थ में, पालित अर्थ में, सेवित अर्थ में इस प्रकार यह हो निर्मथ प्रवचन जो अनुपम/अनुत्तर है. उस पदार्थ के सेवन अर्थ में सम्मादान की शान्ति के लिये आठ अंग सहित सम्यग्दर्शन सेवनीय है। णिस्संकिय णिक्कंखिय णिव्विदिगिच्छा अमूढदिट्ठीय । उवगृहण द्विदिकरणं वच्छल्ल-पहावणा य ते अट्ठ ।।१।। अर्थ---१. नि:शंकित २. नि:कांक्षित ३. निर्विचिकित्सा ४. अमूढदृष्टि ५. उपगृहन ६. स्थितिकरण ७. वात्सल्य और ८. प्रभावना ये सम्यक्त्व के आठ अंग हैं। सब्बेदाणि पंचाणुष्वदाणि; तिषिण गुणव्यदाणि, चत्तारि सिक्खावदाणि; बारसविहं-गिहत्य-धम्ममणु-पाल-इत्ता । अर्थ-..-पाँच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिक्षाव्रत सब बारह विधि रूप गृहस्थ धर्म अनुपालन करके... दंसण-वय-सामाइय-पोसह-सचित्त-राइ- भत्तेय । बंभारंभ परिग्गह अणुमणमुदिट्ट देसविरदोय ।।१।। १. दर्शन प्रतिमा २. व्रत प्रतिमा ३. सामायिक प्रतिमा ४. प्रोषधप्रतिमा ५. सचित्तत्याग प्रतिमा ६. रात्रिभोजनत्याग प्रतिमा ७. ब्रह्मचर्यप्रतिमा ८. आरंभत्याग प्रतिमा ९, परिग्रहत्याग प्रतिमा १०. अनुमतित्याग प्रतिमा और ११. उद्दिष्टत्याग प्रतिमा ये देशव्रत के ग्यारह स्थान रूप ११ प्रतिमा हैं, इनका पालन करें। महु-मंस-मज्ज जूआ वेसादि-विवज्जणा सीलो। पंचाणुव्यय-जुत्तो सत्तेहिं सिक्खावयेहि संपुण्णो ।।२।। अर्थ--श्रावक मधु, मांस, मद्य तीन प्रकार के सेवन का त्यागी,
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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