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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
१४९ त्याग करता हूँ ( अज्जवं अब्भुट्टेमि ) आर्जव को स्वीकार करता हूँ ( लोहं वोस्सरामि ) लोभ का त्याग करता हूँ ( संतोसं अब्मुडेमि ) संतोष को स्वीकार करता हूँ ( अतवं बोस्सरामि ) अतप का त्याग करता हूँ ( दुवादसविह-तवो-कर्म-अब्भुट्टेमि ) बारह प्रकार के तप कर्म को स्वीकार करता हूँ( मिच्छत्तं परिवज्जामि ) मिथ्यात्व का त्याग करता हूँ। सम्मत्तं उवसंपज्जामि ) सम्यक्त्व की शरण जाता हूँ ( असीलं परिवज्जामि ) अशील/कुशील का त्याग करता हूँ ( सुसील-उवसंपज्जामि ) सुशील को स्वीकार करता हूँ ( ससल्लं परिवज्जामि ) शल्य का त्याग करता हूँ ( णिसल्लं) निःशल्य को ( उक्संपज्जामि ) स्वीकार करता हूँ ( अविणयं-परिवज्जामि ) अविनय का त्याग करता हूँ ( विणयं उवसंपज्जामि ) विनय का पालन करता हूँ (अणाचारं परिवज्जामि ) अनाचार को छोड़ता हूँ ( आचारं उवसंपज्जामि ) आचार का पालन करता हूँ ( उम्मग्गं परिवज्जामि ) उन्मार्ग को छोड़ता हूँ ( जिणमग्गं उवसंपज्जामि ) जिन-मार्ग की शरण जाता हूँ ( अखंति परिवज्जामि) अशांति का त्याग करता हूँ ( खंति उवसंपज्जामि ) शांति को धारण करता हूँ ( अगुतिं परिवज्जामि ) अगुप्ति को छोड़ता हूँ ( गुर्ति उवसंपज्जामि ) गुप्ति को धारण करता हूँ ( अलि परेक जामि ) Ton/ संसार दशा का परिवर्जन करता हूँ ( सुमुत्तिं-उवसंपज्जामि ) सुमुक्ति को स्वीकार करता हूँ ( असमाहिं परिवज्जामि ) असमाधि को छोड़ता हूँ ( सुसमाहिं उवसंपज्जामि) सुसमाधि को स्वीकार करता हूँ ( ममत्तिं परिवजामि) ममत्व का परिवर्तन करता हूँ ( णिमममत्ति उवसंपज्जामि ) निर्ममत्व को स्वीकार करता हूँ ( अभावियं भावेमि ) अभावित को माता हूँ ( भावियं ण भावेमि ) भावित को नहीं भाता हूँ।
( इमं णिग्गंथं पब्धयणं ) इस निग्रंथ लिंग को आगम में मोक्षमार्ग रूप कहा गया है ( अणुत्तर केवलियं पडिपुण्णं ) केवलीप्रणीत यह लिंग अनुत्तर है, ( णेगाइयं ) रत्नत्रय रूप समूह से उत्पन्न नैकायिक है ( सामाइयं संसुद्धं ) समय में होने वाला यह लिंग सामायिक है, निर्दोष होने से संशुद्ध है, विशुद्ध है ( सल्लघट्टाणं-सल्लघत्ताणं) माया-मिथ्या-निदान तीन शल्यों का नाशक है ( सिद्धि-मग्गं ) सिद्धि का मार्ग है ( सेढि मग्गं ) श्रेणी का मार्ग-उपशम क्षपक श्रेणी का मार्ग है अथवा/गण श्रेणी निर्जरा का मार्ग है ( खंति मग्गं ) उत्तम क्षमा का मार्ग है ( मुत्तिमग्गं ) मुक्ति का मार्ग