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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका चरित्तसिद्धाणं अतीता-गागदवट्टमाण-कालत्तय सिद्धाणं, सव्वसिद्धाणं णिच्चकालं, अच्चेमि, पुज्जेमि, वन्दामि, णमस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइ-गमणं समाहि-मरणं, जिण-गुण-सम्पत्ति होदु मज्झं। [ इन गाथाओं का तथा गन का अर्थ पूर्व में आ चका है]
लध योगिभक्ति नमोऽस्तु सर्वातिचार-विशुद्ध्यर्थ-मालोचना-योगि-भक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् ।
अर्थ-हे भगवन् ! नमस्कार हो, मैं अब सब अतिचारों की विशुद्धि के लिये योगि भक्ति संबंधी कायोत्सर्ग करता हूँ
णमो अरहताण णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं णमो लोए सध्यसाहूणं ।।१।।
[कायोत्सर्ग ] प्राषट्-काले सविधुत्-प्र-पतित सलिले वृक्ष-मूलाधिवासाः, हेमन्ते रात्रि-मध्ये प्रति-विगत - भयाः काष्ठ-यत्-त्यक्त देहाः । ग्रीध्ये सूर्यांशु-तप्ता-गिरि-शिखर-गताः स्थान-कूटांतर-स्थास्ते मे धर्म प्रदधुर्मुनि-गण-वृषभा मोक्ष-नि:श्रेणि- भूताः ।।१।।
गिम्हे गिरि-सिहरत्यावरिसा-याले रुक्ख-मूल-रयणीम् । सिसिरे वाहिर-सयणा ते साहू वंदिगो णिच्वं ।।२।। गिरि-कन्दर-दुर्गेषु ये वसन्ति दिगम्बराः । पाणि-पात्र-पुटाहारा-स्ते यांति परमां गतिम् ।।३।।
[अञ्चलिका इच्छामि भंते ! योगिभत्ति-काउस्सग्गो कओ तस्सालोचे, अट्ठाइज्जदीव-दो- समुद्देसु, पण्णा-रस-कम्म- भूमिसु, आदावण-रुक्ख-मूलअभोवास-ठाण-मोण-वीरासणेक्क-पास-कुक्कुष्ठासण-चउ-छ-पक्खखवणादिजोग-जुताणं सव्यसाहूणं णिच्चकालं अच्चेमि, पुज्जेमि, वंदामि, णमस्सामि, दुक्खक्खओ कम्पक्खओ बोहिलाहो, सुगइ-गमणं समाहिमरणं, जिणगुणसंपत्ति होदु मज्झं ।
[ इन गाथा, श्लोक व गद्य का अर्थ योगी भक्ति में देखिये ]