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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका मुनिवर ! दीन हीन प्राणियों को दान देने से पुण्य होता है या नहीं-उस श्रावक की इच्छानुसार उत्तर देना इच्छाविभाषण दोष है। ६. पूर्वस्तवन दोष-हे सेठ ! तू संसार में प्रसिद्ध दाता है । तेरे पूर्वज भी महादानी थे इस प्रकार प्रशंसारूप वचनों द्वारा गृहस्थ को आनन्दित करके आहार करना पूर्वस्तवन दोष है । ७. पश्चात् स्तवन दोष---आहार के बाद दातार की प्रशंसा करनाहे श्रीमन्न ! तू बड़ा दातार है । तेरे जैसा आहार कोई न बनाता है और न देता है; पश्चात् स्तवन दोष है। ८. क्रोध दोष-कुद्ध होकर आहार लेना क्रोध दोष है। ९. मान दोष-मान कषाय सहित आहार लेना मान दोष है। १०. माया दोष—मायाचार से आहार लेना माया दोष है। ११. लोभ दोष-लोभ कषाय सहित आहार लेना लोभ दोष है। १२. वश्यकर्म दोष-वशीकरण मंत्र के द्वारा आहार प्राप्त करना वश्यकर्म दोष है। १३. स्वगुणस्तवन दोष-अपने कुल, जाति, तप आदि का गुणगान करके आहार लेना स्वगुणस्तवन दोष है। १४. मन्त्रोपजीवन दोष--अंग शृंगारकारी पुरुषों को पठित सिद्ध आदि मन्त्रों का उपदेश देना मन्त्रोपजीवन दोष है | १५. खूणोपजीवन दोष-चूर्णादिक का उपदेश अनोपार्जन करना चूणोपजीवन दोष है। १६. विद्योपजीवन दोष-आहार के लिये गृहस्थों को सिद्ध-विद्यासाधित विद्या प्रदान करना विद्योपजीवन दोष है । ये १६ उत्पादन दोष हैं । ये १६ उत्पादन दोष पात्र ( साधु ) के आश्रित हैं। १० एषणा दोष १. शंकित दोष—यह वस्तु सेव्य है या असेव्य है, शंका करते हुए आहार लेना शंकित दोष है।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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