SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 997
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CUSTOISTRISTRISTISTICS विद्यानुशासन 935015DISPISCERTS द्विनिशा तिल रुग्राजी कत्वोर्तित विग्रहः दशः स्नादि दादा देस मा सुगंध नार हविः ॥१५५ ॥ दोनों हल्दी तिल उग्र (लहसून) राजी (राई) को मिलाकर जो स्नान करता है उसका शरीर सुंगधित और कांति युक्त हो जाता है। पथ्यामालूरमूलाभ्यां निशावोशीर युक्तया, उद्वर्ततेन दिष्टाभ्याम दुग्गंध वपुर्भयेत् ॥१५६॥ पथ्या (हरडे) मालूर (बिल्च( जड़ ) हल्दी उझीर (खस) के उबटन से शरीर सुगंधित हो जाता है। रोदारग्वध दाडिम निंब शिरीष त्वग ब्दरजनी श्यांमः उद्वर्तने प्रयुक्ता शरीर दौरगंध्य मय नयंति वधूनां ॥१५७॥ रोद्र (लोध) आरग्यध (अमलतास) दाहिम नीम सिरस की छाल अब्द (नागरमोथा) रजनी (हल्दी) श्याम (काली हल्दी) के लेप से यधु (स्त्री) के शरीर की दुर्गध दूर होती है। लोधजंबु दलोपेतं रजुनस्ट प्रसनकैः उद्वर्तनं कृतं धर्म जल गंध निरस्थति लोध जामुन के पत्ते अरजुन के फूल के लेप से दुर्गंध नष्ट हो जाती है। ॥१५८॥ सायं तेन लीठो दल पूर्ण मातुलंगस्य, फल कृतिवं त्रिधा वकं रुप्याद धो वायु ॥१५९॥ मातुलुंग (बिजोर के पत्ते के तूर्ण को सायंकाल के समय घृत में मिलाकर चाटने से तथा फल के समान मुँह में रखने से अधो वायु नहीं निकलती है। निशा कल्कोरिन सेतामा महिषी छगण वत्तोः, तनुते तनु मालिप्तः स्वर्ण समयुतिः ॥१६०॥ हल्दी के कल्क को आग पर तपाकर भैंस के छगण (सूखे गोबर) में मिलाकर लेप करने से शरीर सोने के समान कांतिवाला हो जाता है। गोमहिष्याश्चमूत्रेण करिषेण च भृक्षणं अभीक्ष्णं विहितं कुच्चिर्मण स्तुल्य वर्णतां ॥१६१॥ CASTHACIDIOISTOTLEDIS९९१ PISTOTRASOISONIPATIOTES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy