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________________ 959595‍59595 विद्यानुशासन P5596959595 ॥ ९१ ॥ यष्टि लांद्र रजस्तुल्य यवचूर्ण विलेपनात्, मुखं भवति निष्टप्त सुवर्ण रूचि भासुरं मुलहठी लोध के चूर्ण के बराबर जौ का चूर्ण लेकर इसके लेप से मुख सोने के समान कांतिवाला हो जाता है। वदरास्थि हिमस्यामा कालेवकज्जलैः कृतः, प्रलपे कुरुते वक्रं शतपत्र समप्रभं ॥ ९२ ॥ बेर की गुठली हिम (कपूर) श्यामा (प्रयंगु) कालेयक (केशर) जल में पीसकर अर्थात् पानी जैसा करके लेप करने से मुख कमल के समान कांतिवाला हो जाता है। वट पांडु छद श्यामा लोद्रकालेय रुक हिमै:, मुखं मुहुर्मुह मृष्टं स्व कांत्यां शशिनं जयेत् ॥ ९३ ॥ वट (बड़) पांडु (पटोल) छद (पत्ते) श्यामा (प्रयंगु) और लोध (का लेप) केशर (रूक ) कूट और हिम (कपूर) को मुख पर बार बार लेप करने से वह अपनी कांति से चंद्रमा को भी जीत लेता है । उद्वर्तित हिमोशी रुजा कुवलच्छदैः, वक्रः सद्वक्षतां गच्छेत शरद शश धर छवि 1138 11 हिम (कपूर) उशीर (खस) रूजा (मेथी) कुवलय (कमल) के पत्तों के लेप से मुख शरदकालीन चंद्रमा के समान कांति वाला हो जाता है । हिमोदीच्यां गनाकोल मंदं कालेयकैर्मुखं, लिंपेत् कांयै तथा ताम्र भयः शाल्मलि कंटकैः ॥ ९५ ॥ हिम (कपूर) कोलमद (बेर के वृक्ष का गोंद) कालेयक (केशर) और शाल्मली कंटकै (सेंमल के वृक्ष के कांटे का लेप करने से उदीच्या (उत्तर दिशा की ) अंगना कुमारी कन्या का मुख तांबे के समान कांतिवाला हो जाता है। लिप्तं मसुर विदलै निस्तुषे राज्य मज्जितैः, क्षीर पिष्टैर्मुखं दूरमति सैतोविधोः कृतिं ॥९६॥ मसूर की दाल का छिलका उतारकर घी में मिलाकर दूधमें पीसकर लेप करने से मुख दूर से चंद्रमा की कांति को जीत लेता है। 2525252525P505|4 |5P50/525252525
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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