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________________ STERISTRICISIOSSIOE विद्यानुशासन SRISCIRRISORSCIT IN दिक्काल मुद्रासन पल्लवानांभेदं परिज्ञाय जपेत समंत्री न चान्यथा सिद्धयति तस्टामंत्रः कुर्वन् सदा तिष्टतु जाप होमं ॥१॥ दिशा काल मुद्रा आसन और पल्लयों के भेदों को जानकर ही मंत्री को मंत्र का जाप करना चाहिये अन्यथा निरन्तर जप और होम करने से भी उसका मंत्र सिद्ध नहीं होता। स्तंभं विद्वेषमात्कृष्टं पुष्टिं शांति प्रचालनं वश्यं वधं च कुर्यात् पूर्वाभिमुखः कमात् ॥२॥ मंत्र में आठ प्रकार के कार्य होते हैं स्तंभन विद्वेषण आकर्षण पौष्टिक शांति प्रचालन अर्थात् उद्घाटन वश्य और मारण कर्म इनकी सिद्धि में क्रम से पूर्व आदि दिशाओं में मुख करके बैठे। उच्चाट शांतिकंपुष्टिं वश्यमाकष्टिम प्रियं ऋतुषु प्रावृडाटयेषु षटसु कुर्वीत कालयित् काल को जानने वाला उद्याटन शांतिक पौष्टिक वश्य और आकर्षण के अप्रिय कर्मो को प्रविट आदि ऋतुओं में करे। 05015015015IOSDISCL ९२ BARDISCISCI5015015015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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