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________________ 9595PS959595 विद्यानुशासन 5 मंत्रेणनेन विधिवत् कृतैर्भुविजपादिभिः, अखिला निष्फला वाप्तिर्भवे ध्रुवं ॥ २५ ॥ इस मंत्र से पृथ्वी में विधिपूर्वक जप आदि करने से शीघ्र ही सम्पूर्ण अभिलाषाओं की प्राप्ति होती है । ॐ ह्रीं ह्रौं धनपतये नमः इति वैश्रवणस्य पुष्टि कृन्मंत्रः अष्टपरिवार यक्षास्तस्यो उक्ताजंभल प्रमुखाः ॥ २६ ॥ यह कुबेर का पुष्टिकारक मंत्र है कुबेर के परिवार में जंभल आदि आठ यक्ष हैं। ह्रां ह्रीं हूँ ह्रीं ह्रः अस्त्राय फट अंगानि अध्याय पति वर्णै: पूवाशा स्थितैः पररितं:, नव रल भरित रैमटा करंडकाध्या स्यमानमुं ॥ २७ ॥ पीले वर्ण के पूर्व आदि दिशाओं में स्थित उन राजहंस पक्षियों का ध्यान करके नौ रत्नों से युक्त रैभय (घास) के पिटारे में नीचे को मुँह किए हुए बैठे। 95 वैश्रवणं पीताश्रुकं भूषणम मुनाजु होतु मंत्रैण द्रव्यै, स्तिल प्रभृति भिर्धन धान्यादेर्विवर्द्धिः स्यात् ॥ २८ ॥ इस मंत्र के द्वारा तिल आदि द्रव्यो से पीले वस्त्र वाले कुबेर का हवन करने से धन धान्यादि बढ़ते हैं । ॐ जंभलाय लूं माणी भद्रय ब्लूं पूर्ण भद्राय क्लूं विधि कुंड़िने क्लूं कपि मालिने ब्ली चमरेंद्राय म्लीं मुखेंद्राय क्लीं नलकूबराय नमः अमीभिरभित्रै भलाधान क्रमादमून्. गंधपुष्पादिभिमंत्री तत्तद्दीश्वभि पूजयेत 1138 11 मंत्री इन आठ मंत्रों से इन जंभल आदि आठों का गंध पुष्प आदि से उस दिशा में पूजन करे । ॐ नमो ब्रह्माणिप्रपूजिते नमोस्तुस्तेभ्य स्त्र्यशीति कपाल लिनि मयि स्वाहा श्वेतार्क तूल वर्त्तिदीपे नरतेल वोधितारात्री, व्यक्ति करोतिभूमी संस्थं निधानं जपेनास्य 595/९७२ P595P 95959529 11:30 11 Po9595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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