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________________ ಆಡಳSENESK Raggu Dಣಣಚಟಣ रवे जडिल केशः स्या नाग्गो गंधोरहिं विधोः, अभ्यहि तवह विद्यां दनं तोत्पलिकं परं ॥२५॥ सूर्य का नाग जटिल केश आकाश में रहता है विधु (चंद्रमा) का गंध नाम अभय (मंगल) का हित वह नाग बुद्ध का अर्णतो उत्पलिका नाग है। केशोत्पलिक मार्यस्य गज कुंड कवेर्विदुः, मंदस्य कालिका नाग राहो राशि विषं तथा ॥ २६॥ वृहस्पति का केशोत्पलिका शुक्र का गज कुड़ा शनिश्चर का कालिका नाग और राहु का आशि विष नाग है। क्रमत श्चत्वारी द्वौ सप्त दश द्वादश- त्रयोदश च द्वौ च प्रयच तेषां संति फणा नाग राजानां उन्न नागों के क्रम से चार दो सात दश बाहह तेरह दो और तीन फण है। ॥२७॥ राज ग्रहस्य नागेंद्रः परित्यक्त शिरः फणः, पुछ मात्र स्वदेह श्च तथा केतोश्च नागराट् ॥२८॥ नाग राज बिना सिर रूप फण वाला केवल पुछ मात्र शरीर ही धारण किए हुए है। इति ग्रह पूजा विधि दिवसे ष्वरिवलेष्वपि कारयेन्महा भिषवं, साध्य स्तीर्थ करस्य प्रीत्या ग्रह तुल्य वर्णस्टा । ॥ २९॥ उन ग्रहों की पूजा की विधि के दिन ग्रहों के रंग वाले तीर्थकरों का भी महा अभिषेक व पूजन करना चाहिए। नित्यं रोगी स्नायान्मजन पीठ प्रणाल निर्गलतैः निपतनं द्भिनिर्ज मूर्द्धनि जिनाभिषेकाबुभिः पूणे: ॥३०॥ जो पुरुष रोगी रहता है वह भगवान के अभिषेक के सिंहासन की नाली से निकल कर गिरे हुए जल को अपने सिर पर डाल कर स्नान करे। ग्रह वर्णे गंवाधै: छत्रैववै प्वजै महा चरुणा, अपि नया गीतर्वार्यजे जिनेन्द्रं यथा विधिना । ॥३१॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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