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SEDI5015106510S015 विधानुशासन HS61585DISTOTSIDIN
एकैकमपि निवईनमनेक दोषापहारि भवति जणां
एवं निवऱ्या धीमान जल मध्टो तं बलिं दद्यात् ॥ २२२ ॥ एक एक की ही बलि देने से पुरुषों के अनेक दोष दूर हो जाते हैं इस प्रकार कार्य करने से सब बलि को जल में विसर्जित कर दे।
ब्राह्यादिमुरव नीरांजनं व्राह्मी आदि आठों मातृका देवियों के मुख की आरती करे
नवग्रहों की शांति का विधान
नाग विधि जलं गंधाद्र कृतया परिमदितया प्रशस्त मृतकया
पिष्टेन वा सुशालै र थवा गोधूम पिष्टेन ॥२२४ ॥ जल और गंध (चंदन) मे गीली की हुई मिली हुई उत्तम सिद्ध मिट्टी अथवा उत्तम चावलों या गेहूँ के आटेसे
कथित निज फणसमेता: सलक्षणः स्वग्रह प्रभाः,
कार्याः नागास्ते हस्त मिता एक वृतास्त्रि प्रमाणा वा ॥२२५ ।। पूर्वोक्त कहे हुए अपने फण सहित अपने अपने लक्षणो सहित अपने घर की सी कांति याले नागों की आकृति बनाए वह नाग एक हाथ ऊँचे एक या तीज कुंडल वाले हो।
इति नाग विधि: गुडोदनं रवेरिंदो नागस्य तपायसं, गुड पाटास मारस्य चांद्रस्साज्यो हरिन्चकः
॥ २२६॥ (रवि) सूर्य के नाग का गुड़ और भात इन्दु (चन्द्रमा) के नाग का घृत और खीर, मंडल का गुड़ और खीर, बुध के नाग का घृत ।
जीवस्याहेगुड़ स्यान्नं शुक्रस्य तु यतौदनं, सौरेश्वरुपतो पेतस्तिल चूर्ण विमिश्रितः
॥२२७॥ वृहस्पति के नाग का गुड़ का अन्न शुक्र का घृत और भात और शनिश्चर के नाग का घृत युक्त नैवेद्य तिलों के चूर्ण से मिला हुआ हो।
प्रियं माषोदनं राहौः शरवश्वक्त्यांर्पितांबु वा,
नाग राजस्व के तोरपे तदेव प्रियं स्मृतं CASDISTRISTRISTRISI05051९४८ PISTA505251005051035
|| २२८॥