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________________ CASTRISTOTSIDEOSD5 विद्यानुशासन 20501510150151215958 त्रिपल मर्कटी बीजं माष चूर्ण चतुष्पलं, त्रिजातकं च यष्टिं च फलं जात्यास्तकीर्तितं ॥२॥ प्रत्यकमष्ट निष्कं च सर्व संचूर्णोततः, वस्त्रेण गालितं कृत्वां चूर्णं सर्व समाहरेत् ॥३॥ ॥४॥ तचूर्ण नाभि पक्के च नालिकेर फले क्षिपेत्, तन्मुखं तत्फलेनैव पिद्याय च विचक्षणं तत्फलं डोलिका यंत्रे वदध्वाक्षीराठके पचेत्, क्षीरशोषं यदा प्राप्तं तदा पाकः प्रजायते स्वांग सीते च संजाते फलांतेः पिष्टिकां हरेत्, तत्समां शर्करा क्षित्वा क्षीरे संमेल्टा मर्द्धयेत् ॥६॥ कृत्वा चाक्ष प्रमाणेन वटिकान् शोषये ततः, शकरांत: प्रपूर्याध छायाटां गोपयेत् सुधी ॥७॥ वटिकां चैक मादाय क्षीर संलोडय पायोत्, कत्वा सुपाने पक्षातमुहूर्तों परि पारभेत् ॥८॥ सततं प्रौढ़ कामिन्यां वीर्य वृद्धिः कमाद्भवेत्, रवलितेपि दृढ़ा कारो जायते नात्र संशय ॥९॥ पंडित एक पल (चार तोले) समुद्र सोख के बीज दो पल कोकिज्यस्य बीज (तालमखाने) परिकीर्तत कहे गये हैं और तीन पल मर्कटी वीज (बानटी= कोंच के बीज) और माष (उड़द का चून) चार पल लेवे निजातकादालचीनी तेजपात इलायची) यष्टि(मुलैठी) और जातीफल (जायफल) कीर्तितं (कहे गये हैं। यह एक आठ निष्क (बत्तीस मासा) लेकर इन सबको चूर्ण करके उन सबको कपड़े से छानकर आहर (लेकर) रखे। इस सारे चूर्ण को नारियल के खोपरे केगोलों में छेद करके रखे। चतुराई से खोपरे के गोलों को खोपरे के टुकड़ों से उन छेदों को बन्द करे। उन गोलों को हिंडोला यंत्र के द्वारा आठ सेर दूध में पकाये । जब दूध गाढ़ा होकर सूखने जैसा होवे तब उन गोलों में से उस चूर्ण के पिंड को निकाल ले | उसके बराबर की शक्कर डालकर थोड़ा दूध में मिलाकर अच्छी तरह मथे। उसकी बहेड़ा के फल के बराबर गोलियाँ बनाकर छाया सूक करे, फिर उन पर शक्कर CHODRISTRISTOTSIRIDIOS९०२PISISRISEXSTO50351015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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