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________________ SSCISSISTRISTOT5105 विद्यानुशमन HSSISTRISRISTOTOS नामालिख्य मनुष्टा वक्त्र विवरं तद्रांत सांतावतं, लांत नौं त्रिशीर तेषितम तःकोणस्थ लं बीजकं ॥१८९॥ दिकस्थंक्षी धरणी तलं च विनयं जिव्हा स्थभिनी, होम सन्मंत्रेणार्चित मातनोति गति जिव्हा क्रोधक स्तंभनं ॥१९०|| मन व्य के कपड़े (वका ) पर नाम को क्रम से रांत (ल) सांत (ह) से वृत (घेर) कर फिर लांत (व) ग्लौं और त्रिशरीर (ही) और गोल (विवर) रेखा से वेष्टित करें। फिर धरणीतल (पृथ्वी मंडल) बनाकर कोणों में लं बीज तथा दिशाओं में शिं लिखें । फिर विनय ई जिव्हा स्तंभिनि क्षि स्वाहा इस मंत्र से पूजने से गति और क्रोध का स्तंभन होता है। उदन रजनी वटिका सं पिष्प तदीय वर्तिका लिरिवतं, रांत्र मिदं पाषाणे तत्पिहितं स्वेष्ट सिद्धकरं ॥१९१ ॥ उदन (चावल) रजनी (हल्दी) खटिका (खडिया) को पीसकर उसकी बत्ती से इस यंत्र को लिखकर पाषाण (पत्थर) से पिहित ( ढ़ककर) रखने से अपनी इच्छानुसार सिधि होती है। दिनेन वारेण च नाम रूद्धं लूंचं पुटं ठ स्वर ठांत वेष्टना, उर्वी पुरं वज चतुष्कभिन्नं कोपादि रोट विदधाति यंत्रं ॥१९२।। ॐलूं झं ठंलं स्वाहा ।। उसी दिन तथा बारव तिथि से नाम को वेष्टित करके, उसके पश्चात उसे लूं और झं के संपुट से घेर कर, फिर ठकार (ठ) से वेष्टित करके, सोलह स्वरों से वेष्टित करे, फिर टांत (ड) से वेष्टित करे, फिर चार यज़ो से बिंधे हुये पृथ्वीमंडल को बनाये तो यह यंत्र क्रोध आदि का स्तंभन करता है। आक्रांत तिलक मध्या जयति निजा वाम तर्जन्वी, क्षवथु हिक्कां भास निरोधं स्वागत वाचं हरेनाहता ॥१९३॥ इस यंत्र को तिल वृक्षा की लकड़ी पर अपनी बायें हाथ की तर्जनी अंगुली से लिखे तो क्ष व (जुखाम कम्प) हिला (हिचकी) तथा श्वास रोगों को रोकता है तथा बड़े लोगों से स्वागत के वचन कहलाता है तथा मारण को हरता है। शाल्याक्षत सितपंकज बीजैरंध: सुसाधितं दुग्धं सपतं, भुक्त क्षपोत द्वादश दिवसान वुभुक्षार्ति ॥१९४ ॥ शालि द्यायल और सफेद कमल के बीजों के अन्धस (भोजन) को घी सहित दूध का साधन व सेवन करने से बारह दिन तक रतक भूख का कष्ट नहीं होता है। 050158ISTRISTD35103525/९००PISTRIS051935123570551015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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