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________________ CTERISCTERISPIRAT विहानुभास MORECTRICISION भांतःग्लौंदद्यान्नाम गर्भ कुलिश युगल विद्धं ततस्त द्वि दिक्षु रांतं, वजांतराले वलयितमथे तत् स्वेन मंत्रेण वाद्ये ॥१८४ ॥ ॐवज क्रोधायज्वल ज्वल ज्वालामालिनी हीं क्लीं ब्लूंद्रां द्रीं हां ही हूं हौं हाहन हन दह दह पच पच विध्वंसय विध्वंसय उत्कृष्ट क्रोधाय स्वाहा ॥ आवेष्टन मंत्र यंत्र मिदं भुवि फलके कुंज्ये भूज विलिरव्य तालेन, मंत्रेण पूजितं सत् कुस्यात् हृदयेप्सितं स्तंभं ॥१८५।। नौ बजाकार रेखा बनाकर प्रत्येक में आठ आठ कोठे बनाकर कुल चौसठ कोठे बनाये। उनमें से प्रथम कोठे में चारों तरफ ॐ लिखे, फिर हीं , और फिर ली, और फिर भांत (म) लिखें। बीच के स्थान में दो वजों से भिंधे हुये नाम को ग्लौं को बीच में लिखे, उसकी विदिशा में रात बीज (ल) को लिख देवे। अतंराल में वन लिखें। इसके बाहर चारों तरफ निम्न लिखित मंत्र लिखें। "ॐ बज क्रोधाय ज्वल ज्वल ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं हः हन हन दह दह पच पच यिध्यंसय विध्वंसय उत्कृष्ट क्रोधाय स्वाहा ।" इस यंत्र को पृथ्वी पर कुज्य (घड़े पर अथवा भोजपत्र पर हरताल से लिखकर और उपरोक्त मंत्र से पूजन करने से इच्छानुसार स्तंभन करताहै। मर्त्य वकरोत्थि नाम वेष्टय रोद्रांत सांततः लांतेन, ग्लौं क्षि बीजेन क्षीं लीं दिशि विदिश्यपि ॥१८६॥ लिरवेत् उवीं पुरं वाह्य तदग्रे कुलिशा हतं ई, जिव्हा स्तंभिनि स्वाहा मंत्रेणाचन मारभेत ॥१८७॥ जिव्हा क्रोध गति स्तंभ मातनोत्य विकल्पतः, स्वटिकान्न निशा: पिष्टा तालिरिवतं पटे ॥१८८॥ मनुष्य के मुख से मिकले हुए नाम को रांत (ल) सांत (ह) लांत (व) ग्लौं और क्षि बीज से वेष्टन करें, फिर उसकी दिशाओं में क्षीं और विदिशाओं में लीं लिखें । फिर बाहर बन सहित पृथ्वी मंडल लिखें। इस मंत्र का ईजिव्हा स्तंभिनी मंत्र से पूजन करें। यह मंत्र सामान्य रूप से जिव्हा क्रोधऔर गति का स्तभन करता है इस मंत्र को यडिया अन्न और हल्दी को पीसकर उसकी बत्ती बनाकर वस्त्र पर लिखें। C OISTORICHIDISTRICTETD ८९८PASTERSTIOTSIDASIRISEASICISI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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