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________________ 9595PS विध्वंसय विध्वंसय उत्कृष्ट क्रोधाय कारो बिंदु संयुक्तः स्तंभकृत्पृथ्वी पुरो, अंभपुर गतः शांति कुरुते कुंकुमादिना ॥ १८९ ॥ बिंदु सहित क्षकार को पृथ्वी मंडल में लिखने से स्तंभन करता है तथा जल मंडल में कुंकुम आदि से लिखने से शांति करता है। माहेन्द्र मंडले साध्यमकार द्वितीय दरे, लिखेद्रोचनयाभूर्जे भूमिकथं स्वष्टं रोधनं ॥ १८२ ॥ महेंद्र मंडल में साध्य को दो कारों में गोरोचन से भोजपत्र पर लिखकर पृथ्वी में गाड़ने से इच्छित का स्तंभन करता है। Bb Ph 2 A -× | ४ | ४ |× |४| ४ |४ |X X ले स्वाहा x कुछ कूट ५४ ge ए 8 K 4 ४ ゆちこちにちたちに 上文 Do སྙ 3 짦 K ह्रीं ह्रीं ट्रॉ क दृष्ट M bd 上家 道 Z हुई P लीं ली ली स्वी ह्रीं विद्यानुशासन 1559512959595 誰 शहा X Jag M & 221 म देवदत्त ᄇ ther हीं X x ली ली S 擺 12 मधुम 영 M 2 ख 慎 12 X X X लीं लीं ली फळ लीं लौ 牺 ह्रीं हाँ 杏 ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्री E 蔽 新 ह्रीं ह्रीं ए X X ज क्रो घा पूछ Dd TE R 5 蚣 群 Xx म वज्रा करा रेखा नवकं कृत चतुः षष्टि कोष्टान लिखित्वा, वाह्ये बिन्दु त्रिदेहं तदनुलिखित दंतश्च लिंतस्य ॥ १८३ ॥ 有 态 A 8 X X x X K " PPSP5 ८९७ P59595969599 ग्लू YAR ज्वालामालनी जाल
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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