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लकार: स एव बीजं रांत बीजं लमिति च समुच्चये वार्ताली मंत्र वृतं वज्राणां वहिः प्रदेशे वार्ताली मंत्रेणा वेष्टितं वाह्ये मंत्र वेष्टन वहिः प्रदेशे अष्टो दिक्षु अष्टा सु दिशासु विन्यसेत् विशिषेण स्थापयेत् कथं क्रमशः क्रम परिपाद्या मलवरयूंकार समेतान मश्च लश्च वश्च रश्च यूंकारश्चान मलवयूंकार समेतान कान क्ष म ठ स ह परो रांत लांता तान क्षश्च मश्च ठश्च सश्च हश्व पराः पकारात्परः फकार फश्च रांत स्कारस्यातः लकारः लच लांत लगयतः वकारः सह परांत लांतास्तान क्ष मठ सह परी रांत लांता तान एवं क्षम्ल्वर्यू म्मल्वर्यू स्मत्वर्यू हल्चयूं फम्ल्वयूं मल्च ग्ल्वर्यू एतान अष्ट पिंडान वार्ताली मंत्र वाह्ये प्राच्यादि अष्ट सु दिशासु क्रमेण न्यसेत् ॥
इस यंत्र में देवदत्त के नाम लिखकर ॐ का संपुट बनाये, फिर ग्लौं का संपुट बनाये फिर ठकार से वेष्टित करके मिले हुए अक्षर लिखे । इसके पीछे आठ दिशाओं में आठ वज्रों से वेष्टित करें। वज्र के आगे अर्थात् यंत्र के बीच में ॐ बीज वज्र के आगे अंतराल में ल बीज रखे। वज्रों के बाहर आठ दिशाओं वार्ताली मंत्र को लिखे और बाहर आठों दिशाओं में निम्न लिखित आठ पिडांक्षरों को लिखें क्ष्म् म्म्र्यू ठुम्र्यू क्यूँ हम्र्यू फर्च्यू म्र्यू क्र्यू ।
वाह्ये मरपुर परिवृतमंकुश रुद्धं करोतु, तद्वाद्ये उक्षेश मंत्रवेष्टयं पृथ्वीपुर संपुट वाह्ये
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वाह्ये तत्पिंडाष्टक वहिः प्रदेशे अमरपुर परिवृतं इन्द्रपुरेण समंतादहतं अकुंश रुद्धं करोतु तत् तदिन्द्रपुर चतुर्द्वारोभय पार्श्वेक्रौंकार रूद्धं उक्षेश मंत्र वेष्टयं उक्षां वृषभः तस्य दृशः स्वामी श्री वृषभनाथः तस्य मंत्र उक्षेश मंत्रः तेन वेष्टयं उक्षेश मंत्र वेष्टयां तद अमरपुर वहिः प्रदेशे उ क्षेश मंत्रेणा वेष्टयं पृथ्वीपुर संपुटे वाह्यं तदुक्षेश मंत्र वलय वाह्ये पृथ्वी मंडल संपुटं कुर्यात् ॥
उक्षेश मंत्रोद्धार
ॐ नमो भयवदोरसि हरस तस्स फडिणि मितेण चरण पणत्त इंदेण भणामई टामेण उपाडिया जहि कंठोठ मुह तालुय स्वीलियाणमई भसई मई हसई दुट्ठ दिट्ठीण वज्ज संवलाण देवदत्तस्स मण हिययं कोहं जिव्हा रवीलिया मेल खीलयाये ल ल ल ल
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