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959595999वधानुशास
चतुरस्त्रं त्रिकोणं च वृत्तं चेति त्रिधा विधु: कुंडानि गार्हपत्यायाः पूज्यंते यत्र पावका
॥ १ ॥
अब उन कुंडों का वर्णन किया जाता है जिनमें गार्हपत्य आदि आग्नियों की पूजा की जाती है वह कुंड तीन प्रकार के होते हैं चौकोर त्रिकोण और गोल होते हैं।
こちとらわ
तेषां हस्तोव गाढे विस्तारे च
प्रमामता
पृथक् पृथक् स्मृतास्त्रि स्ति स्त्रिमेरवला स्त्रिषु मंत्रिभिः
॥ २ ॥
उनकी लम्बाई चौड़ाई गहराई एक हाथ होनी चाहिये और वह चारों तरफ मेखला के समान तीन कटिनियों से घिरी हुई हो ।
आरभ्यतां सामा धायविस्तृतावस्थितावपि अंगुलानि प्रमा पंच चत्वारि त्रीणि च क्रमात्
॥ ३ ॥
उनमें से पहले कटिनी की ऊँचाई पाँच अंगुल दूसरी की चार अंगुल और तीसरी की तीन अंगुल
है।
हस्त त्रयेण प्रमित स्तस्था आयाम इष्यते हस्तपादेन संयुक्तों वेद्याः कुंडस्य चांतर
उसकी लम्बाई तीन हाथ और उसकी कुंडों से छ अगुंल अंतर हो ।
कुंडेनां तरितां मंत्री स्तस्याभि मुखमर्पयेत् वेदीमरलि प्रमितं विस्तारोस्त्रय संयुतां
॥ ४ ॥
मंत्री कुंड से कुछ दूर उसके पास एक अरलि (हाथ) लम्बाई वाली ऊंची वेदी बनाये।
॥ ५॥
ततः कुंडं च वेदीं च परितः परिकल्पयेत्
सर्वेषां लोक पालानाभिज्यायै दशपीठिका
॥ ६ ॥
तब कुंड और वेदी के चारों तरफ सब लोक पालों के पूजन के लिए दस आसन बनावे । अथवा
पीठे च नवकुंडानि पठिका अथवा कुर्यात् शास्त्रोक्त मार्गेण मंत्रिणां मंत्र सिद्धये
अथवा मंत्री मंत्र सिद्धि से लिए एक मेरू पीठ को शास्त्रोक्त विधि से बनाये ।
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