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0521505PTERISTRICT विधाबुरशासन 25TTERSICISIONSISTS भक्ति से यंत्र के अधिष्ठाता देवता को नमस्कार करक सत्रु जिस दिशा में होता उसी दिसा में उस वस्त्र तो उड़ावे ।
सर्वलक्षणसंपूर्ण प्रातं मध्य वयः स्थितं, स्वामि भक्त कुले जातमुत्तमं सौर्य संयुतं
॥७०॥ फिर प्रातःकाल के समय सब लक्षणों से युक्त मध्यम अवस्था याले स्वामीभक्त उत्तम कुल व जात में उत्पन्न हुए उत्तम वीरता युक्त,
नापितं स्नान मंत्रेण सर्वाभरण भूषितं, सकली क्रिययोपेत्तं रक्षाद यंत्रं च विभ्रतं ।
॥ ७१॥ स्नान मंत्र से स्नान किये हुए सब आभूषणों से सजे हुए सकली करण क्रिया किया हुआ और रक्षा यंत्र को धारण किये हुए,
अकन्यं वा पुरुष कंचिदारोप्य परिहस्तिनः,
नियोजयेत् पुमांसं तं ध्याज दंडावलं वनो तथा बिना कन्यावाले किसी पुरूष को हाथी पर चढ़ाकर उस पुरुष को ध्यजा के दंड के थामने के लिये नियुक्त करे।
रक्षा मंत्रेण बरनीया च्या मराणां चतुष्टयं, तस्यां कोणेषु वितरेद्राज चिन्हानि चाग्रतः
॥७३॥ उसके कोनो में रक्षा मंत्र से चार चमर बांध देवे उसके आगे राज के चिन्हों को रखे।
अस्या जय पताकाया दर्शनादे व जायते भंगः, पर पताकिन्याः सुमहत्या अपिणात
॥७४।। इस जय पताका के दर्शन से ही दूसरे प्रतिवादी की बड़ी भारी सेना भी क्षण मात्र में ही भाग जाती
वश्चिकालि जटायेन धियते युधि मूद्धिनि, जैव गच्छति वाणानां सहस्त्रस्यापि लक्षतां
॥७५ ॥ जो पुरूष युद्ध में अपने मस्तक पर वृश्चिकालि (बिछवा घास) की जड़ को धारण करता है उसके हजारों बाणों का भी निशाना नहीं लगा सकता है।
पीताव शिष्टं गो दुग्धं वच्छेन वृश्चिकेनवा, तदुत्तमांगे निक्षिप्तं भवेदस्त्र निवारणाः
॥ ७६॥ Mರ್ಥಥಬಥS Cé« SPEWS