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________________ STSDISTRISTOTSID5105 विधानुशरमन HSRISTRIDDITICISCES गजमंत्रः प्रयोग सौ डर जप कर पुष्प अक्षातादि उसके मस्तक पर डाले। पूर्वदिशा में स्तंभन यंत्र सहितं ललाटे तस्य तत्पट, वधीयात कृत गीताद्यमप्पस्याग्रे प्रवर्तयेत ॥६३॥ फिर स्तंभन यंत्र सहित उसके मस्तक पर वह वस्त्र बांध दे तथा उसके सामने गायन आदि भी करावे, टांत पिंड लिरिवत्वाव्यामिंद्र बीजेन वेष्टटोत भवनाधिपीतं बाह्ये लिखेत पृथव्याश्य मंडलं ॥६४॥ टांतपिंड (ठम्लव) लिखकर नाम को इन्द्र बीज (ल) से वेष्टित करे फिर उसके बाहर भुवनाधिपति हीं और पृथ्वी मंडल बनावे। ततो वहिःस्व मंत्रेण वेष्टयित्वा निवेदन, मारूतं वलयं मंत्रैः पंचभिक्ष दयादिभिः फिर बाहर अपने मंत्र से येष्टित करके पाँचों मंत्रों से वायु मंडल बनावे। ॥६५॥ समंताद्वेष्टितं कृत्वा दिन वष्टा सुनिवेशयेत्, होमाताजादिकं पिंड स्तंभनि विजयाभिधं ॥६६॥ फिर उसके आठों दिशाओं में आदि में अज (ॐ) और अंत में होम (स्वाहा) लगाकर विजया और स्तभिनि आदि देवियों को लिख्ने । पश्चाद् तस्य सहेष्वां जलं विलिवेद्वहिः स्तंभनि, यंत्रमित्येतत् मंत्रिभिः परि कीर्तितं ॥६७॥ फिर इसके साथ बाहर माहेन्द्र और जल (वाज) मंडल बनावे इसको मंत्रवादियों ने स्तंभनि यंत्र कहा है। CಥEFFEEL{{STS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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