________________
95959595951 विधानुशासन 2695959595
नाम साध्येन पिंडेन पयो बीजेन च क्रमात, अष्ट पत्रेण चाब्जे न वलिखत्परिवेष्टितं
॥५७॥
साध्य के नाम को पय (जल) बीज के पिंडाक्षर से वेष्टित करके उसको कमल के आठ पत्रों में लिखकर वेष्टित करे ।
तत्पत्रे चाष्टदिक्पालान् स्व बीज सहितान वहि:, तत्पृथ्वी मंडलं कृत्वा तद्वाचे व्योम मंडले
॥ ५८ ॥
उसके बाहर आठों पत्तों में अपने अपने बीज सहित आठों दिक्पालों को लिखकर, पृथ्वी मंडल बनाकर उसके बाहर आकाश मंडल बनावे।
जया धैश्चाष्टम्मिंत्रैर्वेष्टित्वा ततो वहिः, माहेन्द्र मंडले देयात्ततो वारिधि मंडलं
॥ ५९ ॥
उसके बाहर आठ पत्रों में आठों जयादि देवियों के मंत्र को वेष्टित करके, उसके बाहर पहले माहेन्द्र मंडल और फिर जल मंडल बनावे |
तर तरंग संगीत चलत्तिमितिमिंगिलं,
यह रत्न युतं फुल पद्मरक्तोत्पलादिकं
॥ ६० ॥
वह जल बहुत से रत्नों तथा फूले हुए पद्म (सफेद कमल) लाल कमल और नीले कमलों वाली चंचल संगीत जैसी तरंगों से गिलं (खाया हुआ) अर्थात् शोभित हो रहा हो।
विलिखेत् जलधि स्तस्य बाह्ये विश्वंभरा पुरं, एवं चंद्रोपकं नाम्ना यंत्रमुत्तंमुत्तमं
॥ ६१ ॥
उस जल मंडल के बाहर (विश्वभंरा) पृथ्वी मंडल बनाये इसप्रकार यह चंद्रोपक यंत्र उत्तमों में उत्तम
यंत्र है।
प्राचयतुं गज मंत्रेण जप्तान्यष्टोत्तरं शतं, पुष्पाणि निक्षिपेत्तस्य मस्तकें स्यात् क्षतादिकं
॥ ६२ ॥
ॐ नमो भगवते महागजाधि पतये ग्रां ग्रीं ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः ग्रं श्लौं श्लौं ह्य (प्लः) सर्व
गजान रक्ष रक्ष स्वाहा ॥
कडक
5195 ८६२ Po
P5PSPS
1