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eSPSPSPSPSS विद्यानुशासन 9595905959595
साध्य श्री शांतिनाथस्य विदधीत महामहान्, महा विभूतिभिः सर्वानष्टाहिक पुरस्सरान्
॥ १२५ ॥
साध्य श्री शांतिनाथ स्वामी के विधान को बड़ी बड़ी विभूतियों के साथ अष्टान्हिक पर्व के दिनों में आठ दिन तक करे ।
पूजयेत् जल गंधाद्यै प्रभूतैः शुत देवतां. हृदये बहु विद्यैर्वस्यै द्रव्यैरन्यैश्च मंगलैः
॥ १२६ ॥
वह जल और गंध आदि बहुत से सुन्दर बहुत प्रकार के वस्त्रों और दूसरे मंगलिक द्रव्यों से शुत देवता का पूजन करे ।
चैत्य चैत्यालय स्तूपमान स्तंभान सवृक्तिकान्, कुर्यात् साध्य: स्वयं तेषां जीर्णानां च न वीक्रीतः
॥ १२७ ॥
साध्य चैत्य और चैत्यालय स्तूप और मान स्तंभो का वृलिक (पूज्य स्थानों) सहित स्वयं जीर्णोद्धार करे तथा नये चैत्यालय बनावे |
कुर्य्यात् कूष्माइयक्षीश्व स्नपनानि महाचरू,
भूषणान्यपि वस्त्राणि दद्याधात्रां च कारयेत्
॥ १२८ ॥
आस कूष्मांडी देवी का अभिषेक पूजन महान नैवेद्य भूषण और वस्त्रादिक देकर करे तथा तीर्थ यात्रा करावे ।
साध्य स्तपोधनानक्षांती: श्रायकान् श्राविकामपि,
दत्वा हारादिकं योग्यमनुवर्त्तेत भक्तितः ॥ १२९ ॥
साध्य मुनि आर्थिकाओं श्रावकों और श्राविकाओं को आहारादि देकर उनसे भक्ति पूर्वक व्यवहार करे ।
एवं पुन्यानु वंधीनि पुन्यान्यर्जयतां नृणां आयुः खंडयितुं नालं सा पापा मारण क्रिया
॥ १३० ॥
इस प्रकार पुण्य के कारण वाले कार्यों से पुण्य को कमाने वाले मनुष्यों की आयु को कोई पापिनी मारण क्रिया खंडित नहीं कर सकती है।
उक्तं च महामह विधानं त्रिवर्णाचारे, महासेन कृतैः जिनमभिनम्य वच्मियहं महामह
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॥ १३१ ॥
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