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________________ 959595959 विद्यानुशासन 959595955 हृदि न्यसेन्नमस्कारमो ह्रीं पूर्वक मर्हतां पूर्वे सिरस सिद्धानाभों ह्रीं पूर्वास्तुविन्यसेत् गुरु मुद्रा हाथ की अंगुलियां मिलाकर की जाती है। - 4 १ ॐ ह्रां णमो अरहंताणं- हृदय २-ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं पूर्वे शिरसि कहकर वामे सिर को यूवे ३ ॐ हुं णमो आयरियाणं दक्षिण सित दाहिने भाग सिर में ४-ॐ हौ णमो उवज्झायाणं- दक्षिण पार्श्वे कहकर दाहिनी पार्श्व में ५- ॐ ह्रः णमो लोए सव्व साहूणं वाम पार्श्वे बायें पार्श्व में फिर कह कर दाहिनी पार्श्व में इन्हीं पांचो मंत्रों को सिर के आगे ऊपर दाहिने पिछले और बायें भाग में न्यास करे यह दूसरी बार का विन्यास क्रम है। ॐ हूं पूर्वक मार्य स्तोत्रं शीर्षस्य दक्षिणे ॐ ह्रौं पूर्वमुपाध्याय स्तवं पश्चिम तो न्यसेत वामे पार्श्वन्यसेद्रोह: पूर्वासाधु नमस्कृतिं ततः पंचाप्य मून्मंत्रान् सिरस्येव पुनसित् प्राग्भागे शिर सो मूर्द्धि दक्षिणे पश्चिमे तथा वामे चेत्येष विन्यास क्रमो वारे द्वितीय के वामायामथ तर्ज्जन्यां न्यस्येत्पंच नमस्कृतिः पूर्वादि दिक्षु रक्षार्थ दश स्वपि निवेशयेत् 113 11 फिर पांचो मंत्रो की क्रम पूर्वक सिर पर सिर के पूर्व भाग पर मुँह के दाहिनी तरफ तथा पश्चिम की तरफ तथा बाईं तरफ न्यास करे। दूसरी बार का विन्यास है। हस्त द्वयांगुली बंधैः पंचानां परमेविष्टनां मुद्रां धृत्वा तनुत्सर्ग तिष्ठेत्पर्यक योगतः ◎らやってたらこらこらで || 8 || ॥६॥ अब पाँचो नमस्कारों का बाईं तर्जनी अंगुली में पंच नमस्कार मंत्र का न्यास करे और पूर्वादि दश दिशाओं में अपनी रक्षा के लिए न्यास का ध्यान करे । अर्थात् दशों दिशाओं में उस अंगुली को क्रम से फिरावे । らでらす 11411 || 6 || 5959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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