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________________ DSPSP/SE * विधानुशासन 959525255 उसके बाहर सोलह दल वाला कमल बनाकर ॐ कला (हम्र्च्यू) पूर्वक दोनों अपराजित देवियों को लिखे । ॐ हम्ल्यू द्विरमुकं रक्ष द्वि स्वाहेति मध्ये लिखेत्, ततस्तस्य दलाग्रेषु गांधारी बीजमा लिखेत् ॥ ४१ ॥ ॐ हयू द्विरमुकं रक्ष रक्ष स्वाहा इसको बीच में लिखे और इसके पत्तों के अग्र भाग में गांधारी बीज मंत्र को लिखे । दलानामंतर्राष्वस्य गौरी मंत्रं ततो लिखेत्, समंतात्सह वज्रं तन्माला नत्रेणा वेष्टयेत् ॥ ४२ ॥ इन दलों के अंदर गौरी मंत्र को लिखे और इसके चारों तरफ वज्र सहित माला मंत्र ( को लिखे) से वेष्टित कर देवे । ॥ ॐ गौरी महागौरी स्वाहा ॥ गौरी मंत्र: ॐ नमो भगवते परमेश्वराय परमलोकनाथाय परम विद्या स्वरूपाय, सर्वार्थसिद्धिं कराय, स्थित्युत्पत्ति संहार करणाय, त्रैलोक्य वंशकराय सर्व शत्रु जय करणाय, सव्वापमृत्यु विनाशन करणाय, सर्व विष संहार करणाय सर्व रोगा पनोदनाय तत्पाद पर्याज सेवनि श्री मति विजयदेवी सुवर्ण वर्णे पाशचक्र वज्र खड्ग त्रिशूल शक्ति परशु रिकाद्य मंडिताष्ट भुजे सर्वालंकार भूषिते वैनतेय वाहने षोडश देव ता परिवेष्टिते सर्व विद्याधिष्ठा भूते सकल मंत्रेश्वरी सर्व शत्रु विजयदायिनी सर्व लोकेष्ट सिद्धि कारिणी सर्वग्रह भय हारिणि सर्व दुष्ट विघ्न विनाशिनी दश नाग त्रास कारिणि स्थावर जंगम कृत्रिम विषम विष संहार कारिणि जरामरण रोग पीडापमृत्यु विद्यातिनि किन्नरं किं पुरुष गरुड़ गांधर्व महोरग भूत यक्ष राक्षस पिशाचापस्मार जन्म विनाशिनी शाकिनी योगिनी डाकिनी प्रेतकोटि व्यंतर कृतोपद्रव द्राविण हे देवि त्वमात्म परिवार सहिते देवदत्तस्य सर्वापमृत्यु सर्वशत्रु सर्व विघ्न सर्व व्याधि नवग्रहोपद्रवान पीडां सर्वोपद्रवं नाशय नाशय श्री ही पति बुद्धि कीर्ति कांति पुष्टि तुष्टि सौभाग्यारोग्य आयुष्य वृद्धि बलैश्वर्य विजय सिद्धि वृद्धि सानिधि भूपं कुरू कुरू ॐ ब्रह्माणि एहि एहि माहेश्वरी एहि एहि कौमारि एहि एहि वैष्णवि एहि एहि वाराहि एहि एहि रौद्र एहि एहि चामुंडि एहि एहि महालक्ष्मी एहि एहि कम्ल्यू क्षां क्षीं क्ष्वं क्षां क्षं क्षीं क्षः क्षि अं कं चं टं तं पं शं क्षं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः द्रां द्रीं दूं द्रौं द्रः पं रं यं ठं जं धं यं झं तं क्षं ह्रीं ह्रीं इवीं इवीं पुषष द्रीं द्रीं क्रपं पं वं वं टं टं हं हं मां मां ददं रं हं हं थं थं चं चं यं यं सं सं तं तं वं वं चं चं पं पं रूम्ल्यू यक्षेश्वरी एहि एहि जय एहि एहि, विजये एहि एहि, अजित एहि एहि, अपराजितो एहि एहि, गौरी एहि एहि गांधारी एहि एहि राक्षसी एहि एहि मनोहरि एहि PSPSPSPSPSPSS ८१८ PSP5951 こらこらわす
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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