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________________ STORIS0521STDISTRICT विधानुशासन 9851235TOISORDI5015 कछुवे की खोपड़ी और पैर कृतांजलि (अजिलि कारिका- लजालू) सहस्त्र पदमा (कमल) मनुष्य के सर के बाल तथा कौये के पैरों का चूर्ण का लेप स्त्रियों के स्तन को छुपा देता है। गलातैलेन संयुक्ता वृश्चिकालि वचान्विता, निहिता मूत्र भूपंके जनयेत् योनि वेदनां । ॥१६०॥ तेल सहित गला() वृश्चिकालि (बरहटा कटेली) और वच को योनि में रखने से अत्यंत दुस्सह योनि कष्ट होता है। शकृत वृश्चिक पुच्छाग्र कंटेकेन युतं स्त्रियाः, करोति क्षितिग्रस्थ स्थ दुस्सहां भग वेदनां ॥१६१।। बिच्छु के पूँछ के अन्य भाग के कांटे से युक्त करके शकृत (उसके गिलाजत टट्टी को) योनि में रखने से अत्यंत दुःरसह योनि कष्ट होता है। शकद द्रक संयुक्तं साद्ध भूरंप सं वृतं, वृश्चिकालेन सं सिद्धं कुर्याद् योनि रूज स्त्रियाः । ॥१६२ ॥ अद्रक और वृच्छिका (सफेद पुनर्नया) के लेप से योनि का कष्ट दूर होता है। लेपः शुकैर भिन्नाटा नारीणां स्तंभये द्भगां, यावत् तावन्न तके ण सुरभेरभि सेवनं ॥१६३॥ शुक्र, अभिन्ना(के लेप से स्त्रियों की योनि का तब तक स्तंभन रहता है जब तक उसको गौ के मढे से नहीं धोया जाता है या सींचा जाता है। वरटी ग्रह चूर्णेन मिश्रितक्षालितैर्जलैः, योनीध्वजौ न प्रविशेन्न यावत् तक्र सेचनं ॥१६४॥ यरटी( टांटया) ग्रह के चूर्ण मिले हुए जल के धोने से योनि में तब तक लिंग प्रवेश नहीं कर सकता जब तक उसको महे से नहीं धोया जाता है। विषाणाग्रेण सुरभरद्यो वक्रण टोषितः, लिप्तंभगं न गम्यं स्यात् गम्यमूर्द्ध मुरवेनतु ॥१६५॥ नीचे मुख्य किये हुए गाय के सींग के लेप करने से योनि में लिंग नहीं जा सकता केवल ऊपर के मुँह किये हुए सींग के लेप से जा सकता है। नाभौ लिप्तं स्त्रीणामद्योमुरवं वृष विषाणा मचिरेणा, रेचनयोनेवंद्य मोक्षा ट भवेत तद उद्धं मुखं ॥१६६॥ C505125T01501501525७९५ PIST215101505505211
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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