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________________ CHODRISIOTISTICISIOE विद्यानुशासन PIROIDDITIODICIARIES अमृत मंत्र स्नान के पश्चात इस आगे कहे हुवे मंत्र को पढ़कर सब अंगों की शुद्धि करनी चाहिये। अमृत अमृतोद्भवं अमृत वर्षिणी क्यों व्धी वं वं मं में सांगंशुद्धिं कुरू स्वाहा स्नान मंत्र : एवं स्नान पवित्रांगो धौत वस्त्र परिग्रह स्थित्वा सन्माजित एकांत प्रदेशे देश संयमी। इस प्रकार स्नान से अपने अंगो को शुद्ध करके धुले हुवे वस्त्र पहन करके व्रतों का धारण करने वाला शुद्ध और एकांत स्थान में बैठे। Mm २१ MAP कते ईंया पथ संशुद्धि : पर्यकासन संस्थितः समीप स्थार्चाना द्रव्यः कुर्याद् विधि मिमं पुरा ॥१॥ वह ईर्यापथ के द्वारा शुद्धि करता हुया पर्यंक आसन से बैठ जावे और अपने पास पूजन के द्रव्यों को रखता हुआ नीचे लिखी विधि को करे। ಗಣಪಣಡದಥಳದ ಆ8_KಥEFENSE
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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