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________________ OISTRICISTORTOISED विधानुशासन VSTORISTRATORIES पथ्या (हरड़े) के कल्क और सरफोका की जड़ के हाथ में पकाये हुए तेल के लेप से दांतों के रोग और दर्द आदि को शीघ्र ही दूर कर देता है। दग्धार्क पत्र भूति महीषी नवनीत मिश्रिता लिप्ता, दशन छद जाताना रोगानां नाशयेन्निकरं १९३५ ।। जले हुए आक के पत्तों की भरमी को भैंस के मक्खन से मिलाकर लेप करने से होंठों के सभी रोग नष्ट होते हैं। हिमानी विनिपातेन संजातमधरे वणं. निशि प्रशमयेन्नाभि तैलेन परि पूरिता ॥१३६॥ बर्फ के गिरने से उत्पन्न हुये नीचे के होंठ के घाव रात्रि में नाभि में तेल भर लेने से अच्छे हो जाते रुग वक्रो शीर कांतोग्रा गोतीरोत्पल चंदनैः. कुच रोगावले पानां विलेपाटां विलोपकः । ॥ १३७॥ रुकाकूठ) चक्रा(काकड़ासींगी) उशीर (खस) कांता (सफेद धूप) उना (अजमोद) गोक्षीर (गाय का दूध) उत्पल (नीलोफर) चंदन के लेप से कुचों (स्तन) (बोबे) के सब रोग दूर हो जाते हैं। रवरा तपे यहुन्वारान स्नूही क्षीरेण भाविता, महोदर महारोगं कृष्णाभ्य वहरेत्तरी ॥१३८॥ काली मिरच को थूहर के दूध में बहुत बार भावना देकर तेज आंच पर करने से और सेवन करने से पेट के महोदर नाम का महा रोग नष्ट हो जाता है। बिल्व दीपकयोः प्रातः पीता स्तकेण रेणवः, गुल्मं सं हरति क्षीरः शिफा पोनर्नवा तथा ॥१३९॥ बिल्व दीपक (अजमोद) के रेणु(धूलि) को प्रातःकाल मड़े के साथ अथवा पुनर्नवा (साठी) की जड़ को दूध के साथ लेने से गुल्म (तिल्ली) नष्ट होती है। सं चूर्णयः पिबेत् प्रातःश्चित्रकं हिंगु दीप्पकं, सुवचिकां च तक्रेण तस्य गुल्मः प्रणश्यति ॥१४०॥ जो चित्रक (चीता बूंटी) हींग दीपक (अजमोद) सुर्चिका (काला नमक) के चूर्ण को प्रातःकाल महे के साथ पीता है उसकी गुल्म (तिल्ली) नष्ट हो जाती है। COPIERRISTOTRIOTERISTOTSI७६१PASPIDIOASIRTERISTRIPPISS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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