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________________ SBIOSSDISTRI505 विधानुशासन VSTOISTRISTOTRICTSOTES आजेन पासा पिष्टामारणयां तुलसी शिफां, आलिप्पोद्वतोदकें व्यंगला सुमनाजनः ॥१२९॥ आरणयां तुलसी (वन तुलसी = नगद बावची) की जड़ को बकरी के दूध में पीसकर मुख पर लेप करने से व्यंग दूर हो जाता है। पूतीकवल्काक्ष मनः शिलाभिर्मनः शिला ताल वटण्दैवा, शिलाज्य लुंगी पशु विट जलैः व्यंगं विनश्येत पिटिकाश्च लेपात् ॥१३०॥ पूतिक (करंज) यलका (असगंध) मेनसिला अथवा मेनसिल ताल (हड़ताल) वड़ के पत्ते अथवा मेनसिल धृत लंगी (मातु लिंगी बिजोरा) पशुटि (गोबर) पशुजल (गोमूत्र) के लेप से व्यंग और पिटिका (मसूरिका चेचक ) नष्ट होती है। मूलगं कदली गुंजन युगलाश्कल सुन कंद संभूतं, अंबु निहं ति कटूष्णां कर्ण रुजां कर्ण पूर्णतः ॥१३१ ।। मूलकं (मूली) कदली (केला) गुंजन युगला (दोनों चिरमटी) श्कलसुन्कंद (श्कपोत्या) लसन का रस कान में डालने से कान के रोग दूर होते है। अभिनव दाड़िम कुसुम स्वरसो वा चूर्ण बीज सलिले वा, दुवांभो वा नस्यान्ना सा रक्तं निहत्याशु ॥ १३२ ।। दाहिम (अनार) के नये फूलों का रस या चूर्ण या बीजों का पानी या दुर्या (दूब) के जल को सूंघने से या नासा रक्त (नाक से बहने वाली नकसीर) को शीघ्र ही नष्ट कर देती है। सह संठी पंग फलैः रवारी गोमत्र नालिकेर जलैः, क्रथितैरधि जिह्वादीन कवलो विहितः प्रणाशयति ॥१३३॥ सोंठ के साथ सुपारी, खारी नमक, गाय का मूत्र, नारियल के जल के क्वाथ को जीभ के ऊपर मुँह में भरने से जिह्वा आदि के रोग नष्ट होते है। पथ्या कल्को लेपः शरपुंरखी मूल साधिते काथो, पकं तैल हज्या दशन रुजांमा शु शूलाद्या ॥१३४ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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