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959695959PS विधानुशासन 9595959526
मंदार मूलं पुष्पार्क गृहतिं सांतये ज्वरान्, कर्णे बहरत्या श्रु दुस्सहोपद्रवानपि
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मंदार (आक) की जड़ को पुष्प नक्षत्र और इतवार के योग में लाकर कान पर बांधने से वह बड़े भारी उपद्रवी ज्यरों को भी नष्ट कर देता है।
हस्तापाताकरे वद्धा पामार्गस्य शिफा ज्वरान्,
रकक्त स्वत्रवृता हंति दुर्बायावा शिफा स्तथा
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अपामार्ग (चिड़चिटा - आंधीगडा) की जड़ तथा दुर्बाया ( दूब) की जड़ को हाथ से उखाड़कर लाल धागे से लपेट कर हाथ में बांधने से सब ज्वर नष्ट होते हैं ।
ज्वरस्य एरंड विल्वयोर्मूलं वचा रामठ सैंधवं. शुंठी च कविता पीता शीतकार्ति विनाशिनि
॥ ४१ ॥
एरंड़ और बेल की जड़ वच रामठ (हींग) सेंधा नमक सोंठ के काथ बनाकर पीने से शीत (जाड़े) का कष्ट नष्ट हो जाता है।
स्था स्न्वाद्यमंतरालं द्वं द्वे पार्श्वे च मध्ये च, विभ्राणमग्रि गेहे त्रितयं न्यस्यैक परिपाटग्रा
स्थापणु (ख) आदि बीज को अंतराल दोनों ओर मध्य में लिखकर एक परिपाटी से तीन अग्नि मंडल लिखे ।
पिंड़स्य वाम पार्श्वे तस्याधोधः क्रमेण पूं युच. मध्य गतस्य तद्वत भक्ति स्तारोथ योगिनः पंच
॥ ४२ ॥
उर्द्ध वकार मं कं प्रविलिख्ा ततो वहि स्तेषां उपरि प्रणवा वामं पुराणमपि बंधु समुपेतं
॥ ४३ ॥
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तारो विमल विविक्तौबिंदु युतौ त्रीणि चापि, तेजांसि विलिद यंत्रं धृत मिदमपहरति मसूरिकादि रुजः
।। ४५ ।।
पिंड की बाई ओर नीचे और बीच में पूं युं से प्रशंसित भक्ति (ॐ) तार (ॐ) और पाँचों योगिनियों को लिखे । ऊपर वकार के चिन्ह (अक्षर) को लिखकर उसके बाहर की तरफ ऊपर ॐ (प्रणव) याम (आ) पुराण (फ) और बंधु ( प्राणिधि-स) को लिखे । तार (ॐ) विमल (ब) विविक्त (भ) बिंदु やったらどうやらこちらに
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