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CTSICSIRISTOT585505 विद्यानुशासन PATRISTOTECISIOTICISH तिल नारंगी हल्दी (क्षणदा) चिंचा(इमली) की खटाई भांगरा के चूर्ण को पीने से या अलग अलग पीने से पूग (सुपारी) के विकार का प्रतिकार कहा गया है।
लावा स्वागद हंति केतकी मूल जं जलं, स यष्टि मधु गंडूषंतु देयुक्तं च चोचकं
||२३८॥ केतकी के मूल से निकले हुये जल और मुलैठी (मघु यष्टि) को मुँह में गंडूष गरारे करने से या चोचक को नाभिमें लगाने से नमक का विकार नष्ट होता है।
सित मद्धी क्रियां सघः प्रतिषेाति टंकणः, जिरा करोति मरिचं वाद्यां विद्रुम संभवां
॥२३९॥ काली मिरच विद्म (मूंगा) से उत्पन्न हुयी बाधा को सुहागा नष्ट करता है जल्दी ही या वेत मृद्धिका (दास) ठीक करती है।
शेत मद्धि लताया यदि तुंग टुमस्य वा क्षीरं,
तिल भव संयुक्ती वा द्वौ प्रशस्यते शिंशया वृक्षः ॥२४०॥ तुंग दुम (नारियल का पेड़) तथा शिंशया वृक्ष (शीशम का वृक्ष) यह दोनों तिली के तेल सहित सफेद मृद्धिका लला (दाख की बेल) के विकार को नष्ट करती है।
वर कीट विषोद्भूत विक्रिया यां शतावरी, मरिय तुंडलीय द्वा चिकित्सित मुदीरितं
|| २४१॥ घरकीट के विष से उत्पन्न हुये विकार को सतावरी काली मिरच और तंदुलीय (चोलाई) चिकित्सा कही गयी है।
नियंति कंकुलोदंबर मूलानि सधत सौवीरी,
रवर भंग विषं कंदोमेह द्विदूक्ष गंधा च ||२४२॥ कंकु (कंगुकांगनी) कोल (बेर) उदंबर मूल (गूलर की जड़) घृत के साथ सौवीर (बेर) की जड़ गदहा
और भौंरा के विष को (कंकोल-शीतल मिरच) उदंबर (गूलर की जड़) सौवीर (बोर की जड़) मेह (अंजीर) और दोनों दूक्ष गंधा गधे और भौरे के विष को नष्ट करता है। (काकोदुंबर अंजीर को कहते
रखरकीट विषोद्भूत वल्सनाभस्य कीटस्ट विकते स्त्रि
फलौषधं षड बिंदु विषं संभूत विक्रित्या यां च सा मता ॥२४३ ।। ಇಡಗುಣಗಳ ಆ38 Vಡಚಣಣಣಣಣಗಳ