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PSPSPSPSPSS विधानुशासन 25969595
विक्रियां लसुनोद्वतों तंदुलं प्रशमयेत्तरां,
फलेदुं विकृत्तिं हंति तैल युक्ता हरीत की
॥ २२५ ॥
लहसून से उत्पन्न हुए विकार को चावल ठीक कर देता है। तथा फलेन्दु (राज जामुन ) के विकार को तेल सहित हरीत की (हरड़े) दूर कर देती '
हिंगु विपती दुग्धं सैंधव मूष्णांबुबीज पूरं रुक, जंबु रंग चूत द्रुम कुसुमं माधवी क्ला चहि
॥ २२६ ॥
हींग के विकार में दूध सेंधा नमक गरम जल बिजोरा रूक (कूठ) जामुन ऋग ( काकड़ा ) सिंगी या यत्सनाभ) चूत (आम) हुम कुसुम (आम के वृक्ष के फूल) माधवी (मधु सहत) बला (खरेंटी) हितकारी है।
महावृक्ष विषं हंति पदमन्या मल की फलं, काथे: सायक पुंस्वस्य क्राथो वा मोह विद्विषः
॥ २२७ ॥
महावृक्ष ( थूहर ) के विष को पद्मनी (कमलिनी) आम्ल की (आँवला) का फल सायक पुंखा (सरफोंका) का वाथ या मोह विष दूर करता है।
॥ २२८ ॥
स्नुक संभवानां व्यापतौनीली पर्णा, वटांकुर : विषं च पादुका पाद समुदपेतं परं हितं स्नुक (थूहर ) से उत्पन्न विकारों में नीली के पत्ते और वड़ के अंकुर हितरूप है और यह पैर को जूते द्वारा काटने में भी हितरूप है।
अर्क क्षीरारुणिक्षीर चोचांलु फलजं जलं, तिल मागधिकां गौलिमौषधानि प्रयोजयेत्
॥ २२९ ॥
आक का दूध अरुणिक्षीर (लाल आक का दूध) चोचालू के फल का जल तिल मागधि (पीपल) गौली (चिकनी सुपारी) को औषध रूप काम में लावे |
वैवस्वतेन क्षीरेण दूषिताया हितं द्दशः,
तिलोद्भवेन तैलेन प्राहु: संसेचनादिकं
॥ २३० ॥
विविस्वन (आक) का दूध से विकार होने पर उसको तिलों से उत्पन्न होने वाले तिली के तेल से सींचना हित रूप कहा गया है।
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