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________________ CSIRISTRISTOSTEST25 विधानुशासन 051015521510151015) दंतितिरिफल) को पीने से उत्पन्न हुये विकार में जामुन मुलहटी धान्य अरिमेद (दुग्धिखेर) तथा केले का फूल हितकारी है। दंति (तिरिफल) के धानों को पीने से जो विकार उत्पन्न होता है। उसकी तुरन्त शांत करने वाली अरिमेद की छाल जिसका सेवन करना चाहिये। अंकोल मूल जनितां श्रेयसी हंति वेदनां, तक्रमंऽच पटुना युक्तं ताल शिफा रुजं । ॥२१९॥ अंकोल की जड़ से उत्पन्न हुयी वेदना को श्रेयसी तक्र माड और पटु सहित ताड़ की जड़ नष्ट करती गालांत्रो द्भवो वाद्यां निरस्थति सुवर्चला, विश्वोषधं तरूं हंति कुंभ संभव संभवा । ॥२२०॥ गरलानोभया (शहद की मख्खी) से हुयी वाधा को सोवर्चल (काला नमक) विश्वोषध (सोंठ) का पेड़ और कुंभ संभव संभवा वृक्ष का रस दूर करता है। अंगी विषे हिंगु मालती मल्लिका कणा, राष्टी ताल शिफा लर्कश्शूल पुष्पं च सैंधवं ॥२२१॥ ऋगी विष समुद्भता स्वयं शमयति सर्पिषा पुन्नाग वर कुष्टाध गंधा मूल निषेचनात् ॥२२२॥ सींगीमोरा (वत्सनाभ) में हींग मालती मल्लिका मोगरे का फूल कणा(पीपल) यष्टि (मुलेठी) ताइवृक्ष की जटा अलक(मदार) चूल का फूल सेंधा नमक उपयोगी है। अंगी (सींगीमोरा) से उत्पन्न हुआ विष धृत पुन्नाग वर (केशर) कूट और असगंध की जड़ का सेवन करने से स्वयं शांत हो जाता है। वन सूरण कंदेन य द्विषं जायते नृणां सा आरग्वधस्य पुप्पेण तमाले न च नश्यति ॥ २२३॥ वन सूरण कंद के खाने से जो विष मनुष्यों को होता है। वह आरग्वध(अमलतास) के फूल और तमाल पत्र से नष्ट होता है। कवादिकं हरदजवल्ली संस्पर्शनोद्भवं, वाण पुरवं प्रमेहारि रूपानत पाद एव वा ||२२४॥ यज़यल्ली(हडसंहारी) के छूने आदि से उत्पन्न हुए कड़वे विष प्रमेहहारि (प्रमेह के जख्म) और उपनतपाद (जूते के काटे हुए पैर को ) वाणपुंख्या (सरफोका) ठीक कर देता है। SISTRISIRSIOSITORSPIRIT5७२८ PISODESIRSTPOSSIDDEI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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