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________________ 252525252525 daganan Y525252525295. विद्यामुशासन इत्येवं कथिताः काश्चिन मुख्य विधादि देवताः विद्यानाम थ मुख्यानां नामान्यत्र निगद्यते || 219 || यह मुख्य विद्यादि देवता कहे गये हैं। आगे कुछ मुख्य विद्यायों के नाम कहे जाते हैं । रोहिण्या द्यामहाविद्या विद्यतेऽचिन्त्य शक्तयः समस्त फलवादिष्टाः पाणिना पंचभि शतैः ॥ १८ ॥ रोहिणी आदि अचिन्त्य शक्तिवाली और समस्त फल के देनेवाली पांच सो महाविद्याहैं । संत्यं गुष्टा प्रसन्नधाय विद्याः क्षुल्लक संज्ञकाः श्लाघ्य प्रभाव प्रभवाः सप्तभि प्रमिताः शतिः ॥ १९ ॥ सत्य अंगुष्ट प्रश्न आदि प्रशंसनीय प्रभाव को देने वाली सातसो क्षुल्लक विद्यायें हैं। आसां द्विधोदितानां विद्यानां भेदा तद्भिदाश्चैव अंतर्भवंति मंत्राः सर्वेपि प्रथित सामर्थ्याः || 30 11 यह दोनों प्रकार की विद्याएं और उनके भेद ही प्रसिद्ध सामर्थ्य वाले मंत्र कहलाते हैं। विद्यास्वतासु सर्वासु सं सिद्धयति विशेषतः विद्या विद्याधारणां याः कथ्यतेता च काश्चना ॥ २१ ॥ इन सब विद्याओं में जो विद्यायें विद्याधरों को विशेष रूप से सिद्ध होती है। उनमें से कुछ के भेद यहां कहे जाते हैं । प्रज्ञप्ति शांतिवेताली भ्रमरी बंध मोचनी आभोगिन्युष्ण वेताली मातंगी शत संकुला मनो वेगा महावेगा दुर्गिणी चंडवेगिका पर्णलब्धी महाज्वाला चंडाल्याकाश गामिनी ॥ २२ ॥ ॥ २३ ॥ १ प्रज्ञप्ति शीत २ वेताली ३भ्रमरी ४बंध मोचिनी ५ अभोगिनी ६ उष्णवेताली ७ मातंगी शत संकुला ९ मनोवेगा १० दुर्गिणी ११ चंडवेगिनी १२ पण लब्धी १३ महाकाली १४ चांडाली १५ आकाश गामिनी 9525252525252} {{ PSRSRS たらたぶ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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