SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 714
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 959695952 विधानुशासन 9595959595r रजः कोरंट मूलस्य जयेज्जग्धं गुडान्वितं चूर्ण न तिल मूल्य सप्तं मुशिकं विषं ॥ ९४ ॥ कोरंट (कटसरया-पियाबासा) की जड़ को (जग्धं) खाने से और घी सहित तिल की जड़ का चूर्ण चूहे के विष को जीत लेता है। गुडै नैरंड बीजैश्च तिलैश्च गुलिकाकृता प्रातर्भुक्ता हरेदात्तिं सद्यो विष वृषोद्भवां ॥ ९५ ॥ गुड़ और एरंड के बीजों को (इंडोली को) और तिलमिलाकर बनाई हुयी गोली को प्रातःकाल के समय खाने से बैल के विष का कष्ट तुरन्त ही दूर कर देता है। मूत्र पिष्टैर्वचा कुष्ट राठ जीमूत कास्थिभिः वमनं मूषिक क्ष्वेलं निहंति दधि मिश्रितैः ॥ ९६ ॥ मूत्र में पिसे हुए वच कूठ राठ (मदन वृक्ष) और जीमूतक ( नागर मोथा) की गुठली को दही मिलाकर सेवन करने से यमन द्वारा चूहों का विष नष्ट होता है । जीमूत कौशातक मदन श्रुकारख्यांऽस्थि चूर्ण संयुक्तं पीतं यांत दधि वृष विष दोषं भक्षु निर्हर ति ॥ ९७ ॥ जीमूत (नागरमोथा) कोशातकी (कड़ची तोरई) मदन (मैनफल) और श्रुका (सिरस) की गुठली का चूर्ण दही के साथ पिलाकर या खिलाकर बैल के विष को तुरन्त ही नष्ट करता है । कौशातकी निशा द्वय दुग्धी मातुल शिफा स्तुषां भोभिः पीतां वांतां वृष विष विकारमचिरादपा कुः ॥ ९८ ॥ कौशातकी (कड़वी तोरई) दोनों हल्दी दूधी मातुल (धतूरा) की जड़ को तुषा (भिलाव) के रस के साथ पीने से बैल के विष का विकार तुरन्त ही दूर हो जाता है। नीली त्रिफला त्रिकटुक कल्केन विरेचनं वृष विषयं शीते तराभिरग्रिः पीतेन भवेद्दिनारभे ॥ ९९ ॥ नीली त्रिफला (हरड़े बहेडा आमला) त्रिकटुक (सोंठ मिरच, पीपल) या त्रिवृता (निसोथ ) अमि (चित्रक) के कल्क को गरम गरम प्रातःकाल के समय पीने से विरेचन द्वारा बैल का विष नष्ट होता है । 95969595959595 ७०८ 95959595959595 ५.
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy