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SISTOREYSISTICISIOTSIDE विधानुशासन CASEASCIRSCISSISTI
॥ अथ मंत्र साधन विधान।
शिष्यो मंत्र क्रियारंभे स्नानःशद्धा वरं दधत् समाहित मना मौनी प्रयुक्त गुरू वंदनः
॥१॥ शिष्य मंत्र क्रिया से आरंभ में स्नान करके शुद्ध धुले हुवे वस्त्र पहन कर एकान्त चित्त होकर मौन व्रत धारण करते हुवे गुरू की वंदना करे।
जिनालय सरित्तीरे पलिने पर्वते वने भवनेऽन्यत्रवा देशं शुमजतु विधाजते ।
॥२॥ जिनालय नदी के तट या पुलिन पर्यत वन घर अथया किसी अन्य जन्तु रहित स्थान में !
यथार्हमासनासीनः सामग्री मानुदग्मुखः प्राङ् मुखोवाभवेत पूजा जय होमान् कोरन्विति
1॥३॥ जिनेन्द्र भगवान के सामने यया योग्य पहासन पर बैठकर अनुष्ठान की सामग्री उत्तर अथवा पूर्व की तरफ मुख करके पूजा जप और हवन करे।
विद्यादि देवतानां च विद्यानामपिनाम घेयानि
कथ्यतेऽत्रतु कति चित् कः कथये तानि का त्सन्टोन ॥४॥ अब विद्यादि देवताओं और विद्याओं के कुछ नाम कहे जाते हैं। पूर्ण तो भला कौन कह सकता है।
वृषभायजितश्चव संभव श्चाभिनंदनः सुमतिः पन प्रभश्चव सुपार्श्व चन्द्रमाः प्रभुः
सुविधिः शीतलः श्रेयान वासुपूज्यो जिनोत्तमः विमलो नंत जिद्धर्मः शांति कुन्युः त्वर प्रभुः
॥६॥
मलिश्च सुव्रतश्चैव नमि नेंमि जिनेश्वरः पार्थोवीर तीर्थेशाश्चतु विशतिरचिता:
॥७॥ वृषभ अजित संभव अभिनंदन सुमति पद्म प्रभु सुपार्श्व चन्द्र प्रभु सुविधि (पुष्पदंत) शीतल नाथ श्रेयांस वासु पूज्य विमल अनंत धर्म शांति कुंथु अर मल्लि मुनि सुग्रत नमि नेमि पार्श्व और महावीर यह चौरीस तीर्थंकर हैं। ಇ5ಜಟಠಠ_{Y Bದಾರ್ಥಥದರ್ಥ