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SSIODIDISTRICISIOF विधानुशासन 2050513052150
॥ॐ॥ श्री जिनाय नमः श्री पार्श्वनाथाय नमः श्री सरस्वत्यै नमः श्री पद्मावत्यै नमः श्री मति सागर गुरवे नमः
॥ अथ: विद्यानुशासन शास्त्रं लिख्यते॥
मंत्रस्य इयमाहु राघवयवं, विस्तीर्ण विद्यार्णवाः
प्रोक्तंयेन शुभं च, कर्म निरिवलं कर्माच्छभ चारिवलं॥ विद्या के बड़े भारी समुद्र विद्वान लोगों ने जिनको इस लोक में मंत्र का आदि अवयव कहा है। जिन्होंने सम्पूर्ण शुभ और अशुभ कर्मों का वर्णन किया है।
शक्तिर्यस्य सविस्मयेकं निलया सं प्राप्तं सौरव्योदयो।
विद्यानाम धि देवता सभवतान्नः सिद्धये सन्मतिः ॥१॥ जिनकी शक्ति बड़े भारी आश्चर्य को उत्पन्न करती है और जिनको उत्तम सुख का उदय प्राप्त हो गया है वह सब विद्याओं के आधि देवता भगवान सन्मति महावीर स्वामी हमारे कार्यों को सिद्ध करें।
सर्वेयन्मति सागरस्य महतो मध्ये गभीराशये। माांति स्मागम सागर स्य पुरतो विद्यानुवादादयः यद्वाग्मं पदानि लोकमरिवलं रक्षति पूतान्यलं।
तं बंदे गणानायकं गुणनिधि श्री गौतम स्वामिनं ॥२॥ जिनकी बड़ी भारी बुद्धि रूपी समुद्र के गंभीर आशय वाले मध्य में आगम रूपी समुद्रों के प्राधन विद्यानुवाद पूर्व आदि समाये हुवे हैं, और जिनकी वाणी के पवित्र मंत्र पद सम्पूर्ण लोक की रक्षा करते हैं। उन गुणों के निधि गण के स्वामी भगवान गौतम स्वामी को मैं (मतिसागर) नमस्कार करता हूँ। ಆಗುಣಪಣ Yಣಪಡಣೆಗೆ