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________________ CASTOISODIOSI9152015 विद्यानुशासन PASSISTOTSIDASTISIPIES मालती (चमेली) की जड़ नंदवर्द्ध (तगर) असगंध और सोंठ सहित पीने से सर्प के विष को नष्ट करता है। वंध्या कुमारी इंद्रयवोग गंधा ब्रह्मायादि घोषेश्वरी का हरिद्रा, वाग्देवदाली पिचु बीज कुष्ट सादिकानां विषनाश दक्षं ।। ८१ ।। गंगा मांझककोड़ा कुमारी तारी) इंद्रया (इन्द्रजो) उग्रगंधा(लहसुन) ब्राह्मी घोषा (तोरई) ईश्वरी (नागदमन) हल्दी सरफोका( देवदाली) पिच बीज (काकडा) (निमोली) कुष्ट(कुठ) यह सर्प आदि के विष को नष्ट करने में अत्यंत समर्थ है। नत कुष्ट मलयज सिंधुज धतुर बीज शतक जलैः, आलेपनं प्रयुक्तं स्यात् सद्यो विष विसर्प हरां ॥८२॥ नत (तगर) कुष्ठ (कूट) मलयज (चंदन) सिंधुज (सेंधा नमक) शतक (सेयती) के जल से लेप करने से सर्प का विष तुरन्त नष्ट हो जाता है। मंत्रितानां गोयत सिता यष्टीनां गारूडादिभिः मंत्रै पानं च भुक्तिश्च दुग्धंतस्य विषं हरेत् ॥८३॥ गरूड़ादि मंत्र के द्वारा गाय के घृत को शक्कर और मुलैठी को मंत्रो से मंत्रित करके खिलाने से और ऊपर से दूध पिलाने से उसका विष नष्ट हो जाता है। तिल मध दिया स्वापव्यायामां तपः मेथुनं कोपं तैलं कुलत्यां विषदष्टो विवर्जयेत् 11८४॥ विष से डंसा हुआ पुरूष तिल मद्य दिन को सोना व्यायाम गर्मी मैथुन क्रोध तेल कुलथी को छोड़ देवे। इह विनिग दिताना गौषधानां प्रयोगो भवति निपण वीर्य : सुप्रसिद्धा गमानां, यम सदन गतानामप सून दष्ट कानां पुनरपि निज देहात स्यात्स आने तुमीश: ॥८५॥ जो पुरुष यहाण पर वर्णन किये हुए अच्छे अच्छे प्रसिद्ध शास्त्रों के औषध के प्रयोगों में चतुर होता है। वह सर्प आदि के इंसने से अपने शरीर से प्राणों को लेकर यम के स्थान में गये हुए को वापस ला सकता है। इति एकादश समुदेश CISISISTERDISTSISISTOTS1615[६९१ PSISTDISASTOTSIDEDICIDIOSE
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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