SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 696
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ QS252595955 विद्यानुशासन 959595959595 नत (तगर) मधुक (महवा या मुलहटी) दारू (देवदार) शुकतरू (सिरस) काली मिरव हल्दी घृत हार () कतक (he) चपला (पारा) मैनसिल सब सर्प के सम्पूर्ण विष को नष्ट करता है। द्विनिषा रामठ राजी पटु मातुल विश्व लसुन लाक्षभि: मूत्रेण कल्किताभिः पानादि विष हरः प्रोक्तः ॥ ७५ ॥ दोनों हल्दी रामठ (अंकोल) राजी (राई) पटु (कड़वे परवल) मातुल (धतूरा) विश्व (सौंठ) लहसुन को लाख के पानी आदि के साथ पीने से विष को नष्ट करने वाला कहा गया है। इन सारी दवाओं को मूत्र से पीसकर कल्क बनाकर पीवे या लेपादि करे। धननाद वाजि गंधा महिषाक्षगार घूमतगराणां पशु सलिल कल्कितानां पानादिः सकल विष हरणं ॥ ७६ ॥ नागर मोथा असगंध भैसा गूगल अगर घूमसा तगर के गाय के मूत्र से कल्क बनाकर पीने से सब प्रकार के विषों को नष्ट करता' | तवही बस शकृता वनरेण च विप्रवर्त्तिता वर्त्ती, पशुमूत्रे कल्किाताभ्यां विष हन्नस्यादिषु वितीर्ण || 99 || तुरन्त के उत्पन्न हुये बच्चे की शकृत (भिष्टा) में तगर मिलाकर बनायी हुयी बत्ती जो गाय के मूत्र से पीसकर कल्क करके सूंघने आदि से विष नष्ट हो जाता है। अर्क पुष्प पुनर्नव भूल वचा मरिच मूत्रषद्धरणैः हेमाति मुक्तं शुक तरू गुंजा बीजैश्च जीयते गरलं || 92 || आकत्र पुष्प पुनर्नवा मूल (साठी की जड़) वच मिरच छहो मूत्र में रखकर हेम (धतूरा) अति मुक्त क्षरू (सिरस ) शुकतरू (सिरस) गुंजी (चिरमी) से विष नष्ट होता है । व्योष नवनति दधि घृत सिंधुद्भव मधुक वृक्ष साराणां, उपयोगाद्वासुकीना दष्टोपि भवत् क्षणात् ऽविषः ॥ ७९ ॥ व्योष (सोंठ मिरच, पीपल) नवनीत (मक्खन) दधि (दही) घृत सिंधद्भाव मधुक (समुद्री महवा) के वृक्ष के सार के उपयोग से वासुकी सर्प से हँसा हुआ पुरुष क्षण भर में विष रहित हो जाता है। मूलं मालत्या च नंद्यावर्तस्याश्व गंधायाव शुंठी सहितं हन्यात्पानायैः कर्म निर्विषं भुजंगानां 25252525252525E-- P/50 ॥ ८० ॥ 950516
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy